
सेब के शौकीन अगर हरसिल के सेब का इंतजार कर रहे हैं तो उनके लिए बुरी खबर। इस बार वे हरसिल के गोल मटोल रसीले सेब का जायका लेना तो दूर उसके दीदार को ही तरस जाएंगे। बेरहम मौसम ने उत्तराखंड के पहाड़ों में ऐसी तबाही मचाई है कि सेब की 75 फीसदी से ज्यादा फसल नष्ट हो गई है। खराब मौसम की इस मार से सेब की 800 से 900 करोड़ रुपये की आर्थिकी को जबर्दस्त धक्का पहुंचा है। जहां किसानों को सीधे-सीधे 400 करोड़ रुपये का झटका लगा है वहीं 600 करोड़ रुपये की आर्थिकी चौपट हो गई है। हैरत में डालने वाली बात यह है कि सेब की फसल की इस भारी तबाही का उद्यान विभाग के पास कोई आंकलन नहीं है। फिलहाल उसकी फाइलों में इस साल सेब उत्पादन में पिछले साल का रिकार्ड टूटने वाला है। विभाग ने बगैर जमीनी सच्चाई जाने इस सीजन में पिछले साल से ज्यादा सेब उत्पादन का अंदाजा लगा रखा है।
लगता है कि उत्तराखंड की सरकार और उसके नेता अपने भाषणों में ही राज्य की बागवानी का उद्धार करते रहेंगे। हकीकत इससे एकदम जुदा है। दरअसल सेब राज्य के नाम से ख्याति हासिल कर चुके हिमाचल की तरह उत्तराखंड में सेब उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। राज्य के उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी, पौड़ी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जनपदों की जलवायु सेब के काफी मुफीद मानी जाती है। विशेषज्ञों की राय में सेब उत्पादन के क्षेत्र में उत्तराखंड में इतनी अधिक संभावनाएं हैं कि यदि सरकार इस ओर खास ध्यान दे तो यह राज्य हिमाचल को पीछे छोड़ सकता है। हिमाचल में सेब की अर्थव्यवस्था 2000 करोड़ रुपये की है। मौसम की मार से इस बार हिमाचल का सेब नहीं बच पाया। सामान्य स्थितियों में वहां सेब की तीन करोड़ पेटियों का उत्पादन होता है। लेकिन इस बार सेब का उत्पादन दो करोड़ पेटियों का आंकड़ा भी मुश्किल से छू पाएगा। इस अप्रत्याशित घाटे के बावजूद हिमाचल के बागवानों के चेहरे पर वैसी उदासी नहीं है। उसे मालूम है कि कम उत्पादन के बावजूद उंदा विपणन व्यवस्था की मदद से वह अपने घाटे को जैसे-तैसे पूरा कर ही लेगा। ओलापात से खराब सेब को सरकार की एजेंसी एचपीएमसी खुद उनके गांव पहुंचकर सेब उठवा लेगी। लेकिन उत्तराखंड के बागवानों की कौन सुध लेगा ? राज्य बन जाने के बाद भी उन्हें भगवान का आसरा है। इस सीजन में इंद्रदेव क्या रुठे बगीचों से सेब की फसल ही साफ हो गई। पहले कम बर्फबारी से पर्याप्त 1600 घंटे चिलिंग आर्वस नहीं मिले, उस पर फ्लावरिंग पर ओलापात हो गया। जब सेब के पनपने का वक्त आया तो रही-सही कसर सूखे ने पूरी कर दी। उत्तरकाशी धराली के सेब बागवान जयेन्द्र सिंह पंवार जो जिला पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं, का कहना है कि धराली से हरसिल के मध्य 60 हजार पेटियां सेब का औसत उत्पादन है। लेकिन खराब मौसम के चलते 10 हजार पेटी सेब का उत्पादन ही हो पाएगा। यानी 75 फीसदी सेब की फसल चौपट हो चुकी है। उनका कहना है कि फ्लावरिंग के दौरान ओला गिरने और फल बनने के वक्त सूखा पड़ने से सारी फसल नष्ट हो गई। पंवार की इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि विपदा की घड़ी में उद्यान विभाग का कोई कारिंदा उनकी सुध लेने तक नहीं पहुंचा। न मंत्री को फुरसत लगी न ही अफसरों को। पंवार की भावनाओं ने साफ कर दिया है कि सरकार को हरसिल के सेब पर इतराना छोड़ देना चाहिए। मंत्रियों और साहबों के दफ्तरों में सेब की तस्वीरें टांगकर सेब की खेती को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता, इसके लिए धरातल पर उतरकर ईमानदार प्रयास जरूरी हैं जो फिलहाल राज्य के किसानों की किस्मत में नहीं है। जिस विभाग पर सेब की खेती के उद्धार को जिम्मा है, वह फाइलों में सेब उगा रहा है। उसकी फाइल में वर्ष 2007-08 में 1.27 लाख मिट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था। इस साल उसने 1.32 लाख मिट्रिक टन सेब उत्पादन का आंकड़ा तैयार कर रखा है। सूखे से कितनी फसल तबाह हो चुकी है, यह आंकड़ा जुटाने की भी विभाग को फुरसत नहीं है। लेकिन हकीकत यही है कि विभाग चाहे अपने कागजों में सेब की फसल कितनी ही बढ़ा दे लेकिन जयेन्द्र् सिंह पंवार सरीखे बागवानों के खेतों में सेब मर रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें