गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

जनसंघर्षों के योद्धा थे राजेंद्र रावत



कवि और वरिष्ठ समाजसेवी राजेंद्र रावत के निधन पर कई पत्रकारों, साहित्यकारों और राजनीतिक नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है । मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने राजू रावत के आकस्मिक निधन पर हार्दिक दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि स्व. राजू एक अच्छे लेखक और संवेदनशील कवि थे । उमेश डोभाल स्मृति न्यास के अध्यक्ष के रूप में वे पत्रकारों के हितों के लिए हमेशा संघर्षरत रहे तथा पुरस्कार योजना भी शुरू करवाई। श्री राजू के निधन से साहित्य और पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।
हिमालय जनर्लिस्ट एसोसिएशन ‘हिमजा’ साहित्य और सामाजिक जीवन की अपूर्णीय क्षति बताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है । हिमजा ने एक आकास्मिक बैठक कर प्रख्यात समाजसेवी व हिंदी कवि राजेंद्र रावत के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है । एसोसिएशन ने स्व. रावत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शराब माफिया के खिलाफ उनके संघर्ष को याद किया ।
हिमजा की बैठक में वक्ताओं ने उन्हें जनसंघर्षों का योद्धा बताते हुए कहा कि पत्रकार उमेश डोभाल के हत्यारों को कानून के कठघरे तक पहुंचाने में स्व. रावत ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई । प्रख्यात हिंदी कवि पदम श्री लीलाधर जगूड़ी की अध्यक्षता में हुई बैठक में वरिष्ठ पत्रकार एस. राजेन टोडरिया, राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय संपादक, माकपा नेता बची राम कौंसवाल, ईटीवी के ब्यूरो चीफ गोविंद कपटियाल, राजेश भारती, राजेश सकलानी, नई दुनिया के ब्यूरो चीफ महेश पांडेय, हिंदुस्तान के समाचार संपादक पूरन बिष्ट, वेदिका वेद, कमला पंत, राकेश खंडूड़ी, गिरीश डंगवाल, मीरा रावत, शीशपाल गुंसाई, अमेंद्र बिष्ट, मनमीत रावत समेत कई अन्य लोग मौजूद थे । प्रख्यात हिंदी कवि पदम श्री लीलाधर जगूड़ी ने राजेंद्र रावत के निधन को व्यक्तिगत क्षति बताते हुए कहा कि समाज व साहित्य में उनका योगदान सदा याद रखा जाएगा । दिल्ली से साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि मंगलेश डबराल, लखनऊ से प्रख्यात पत्रकार गोविंद पंत राजू, महेश पांडे तथा वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल ने राजेंद्र रावत के योगदान को याद करते हुए कहा कि उनके निधन से जनसंघर्षों को प्रेरित करने वाला एक केंद्र खत्म हो गया है ।वरिष्ठ माकपा नेता बची राम कौंसवाल ने भी राजेंद्र रावत के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है ।
पौड़ी शहर के करीब स्थित च्वींचा गांव में जन्मे राजेंद्र रावत ने इंटर तक की शिक्षा पौड़ी में प्राप्त की और बीएससी की डिग्री उन्होंने बिड़ला डिग्री काॅलेज श्रीनगर से हासिल की । कई वर्षों तक उन्होंने गढ़वाल में भारतीय स्टेट बैंक स्टाॅफ एसोसिएशन का नेतृत्व किया और मजदूर आंदोलनों को नई दिशा दी । पौड़ी जिले में होने वाले कर्मचारियों और मजदूर आंदोलनों की वह धुरी बने रहे । बैंक की नौकरी के बावजूद वह आपातकाल में कांग्रेस के अत्याचारों का विरोध करते रहे । उन्हें पौड़ी जिले में वामपंथी आंदोलन का सूत्रधार माना जाता था ं उनकी इसी भूमिका के कारण शराब माफिया ने उनका अपहरण कर लिया और कोटद्वार के जंगलों में अधमरा छोड़ दिया । लेकिन रावत अपने रास्ते से नहीं डिगे । 1988 में जब शराबमाफिया ने उमेश डोभाल की हत्या की तो राजेंद्र रावत ने सबसे पहले मैदान में उतरकर पत्रकारों के इस आंदोलन की अगुआई की । उनके जीवट और पत्रकारों के आंदोलन का ही नतीजा था कि हत्यारों पर सीबीआई जांच का शिकंजा कसा ।
रावत पिछले पांच साल से ज्यादा वक्त से कैंसर से जूझ रहे थे । उन्होंने बीती रात सीएमआई देहरादून में अंतिम सांस ली । उनकी अंत्येष्टि श्रीनगर में हुई जहां भारी संख्या में लोगों ने जनसंघर्षों के इस योद्धा को भावभीनी अंतिम विदाई दी ।

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

उत्तराखंड में जहर का कारोबार

उत्तराखंड में मिलावटखोरों का राज कायम हो चुका है । अरबों रुपये के जहर के इस कारोबार को करने वालों के साथ स्वास्थ्य विभाग ने भी हाथ मिला लिए हंै । एक करोड़ से ज्यादा की आबादी खाद्य पदार्थों के नाम पर धीमा जहर गटकने को मजबूर है । परंतु न सरकार जागती है और न जनता के हितों की चैकीदारी करने का दावा करने वाले जनप्रतिनिधि ।
भारतीय मिथकों में कहा गया है कि शिवजी को हलाहल पीना पड़ा था और इसी कारण उनका एक नाम नीलकंठ भी है । यह विडंबना है कि शिवजी की ससुराल कहे जाने वाले उत्तराखंड के लोग मिलावटखोरों के कारण नीलकंठ बनने को मजबूर हैं । यह कोई अतिरंजित निष्कर्ष नहीं है बल्कि स्पैक्स संस्था के हालिया सर्वे ने यह खुलासा किया है । सर्वे बताता है कि चार धाम यात्रा मार्गों पर परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थों में 80 फीसदी से ज्यादा मिलावट है । इस मिलावट में शरीर को अल्पकालीन और दीर्घकालीन नुकसान पहंुचाने वाले हानिकारक तत्व शामिल हैं । संस्था का दावा है कि इन पदार्थों के सेवन से जोड़ों का दर्द, डायरिया, पेट व लीवर के रोग, केंसर जनित रोग, अल्सर, अंध रोग, त्वचा रोग, बाल झड़ना, बाल सफेद होना आदि गंभीर बीमारियां हो सकती हैं । यह स्थिति सिर्फ यात्रा रूटों की ही नहीं है बल्कि बाकी पहाड़ और मैदानी जिलों में हालात और भी भयावह हैं । जहर के कारोबारियों ने इन इलाकों को भी जहरीले खाद्य पदार्थों से पाट दिया है । राज्य में दूध और उससे बने पदार्थों में सबसे ज्यादा जहरीले रसायन मिले हुए हैं जिसके चलते बच्चों को शैशवकाल से ही जहर का सेवन करना पड़ रहा है । रिपोर्ट बताती है कि सरसों के तेल में शतप्रतिशत मिलावट है तो वलीं काली मिर्च, लाल मिर्च, हल्दी, धनिया, गर्म मसाले, मिठाइयों और रिफाइंड तेल में 80 से 94 फीसदी तक मिलावट पाई गई है । यात्रा में सबसे ज्यादा मिलावट ऋषिकेश में 92 फीसदी और सबसे कम ब्यासी में 54 फीसदी मिलावट पाई गई है । यहां यह गौरतलब है कि पहाड़ को खाद्य पदार्थ आपूर्ति करने वाले थोक व्यापारी चार शहरों कोटद्वार, रामनगर, हल्द्वानी और ऋषिकेश में केंद्रित है ।यह सिर्फ संयोग नहीं है कि 1990 के बाद जिन चारों मंडियों में थोक कारोबार करने वालों की समृद्धि कई सौ गुने की वृद्धि हुई है । यह वही समय है जब स्वास्थ्य विभाग ने मिलावटखोरों के आगे हथियार डालकर दोस्ती का हाथ मिला लिया । इसी दौर में मिलावटखोरों से मिलने वाला चंदा सभी राजनीतिक दलों के चुनावी अभियान का बड़ा हिस्सा बन गया । यही कारण है कि प्रदेश में सरकारें बदलने के बावजूद मिलावटखोरों से सरकार की दोस्ती कायम रहती है । मिलावटखोरों को सरकारी संरक्षण का ही नतीजा है कि 1990 के बाद स्वास्थ्य विभाग में एक भी खाद्य निरीक्षक की भर्ती नहीं की गई । उल्टे उनके बचे-खुचे खाद्य निरीक्षकों के क्रिया-कलापों की निगरानी की व्यवस्था भी खत्म कर दी गई । विभाग ने नमूने एकत्र करने का कोई लक्ष्य ही तय नहीं किए हैं । अरबों रुपये भवन निर्माण पर खर्च करने वाले स्वास्थ्य विभाग नौ साल में महज कुछ लाख रुपये में बनने वाली एक प्रयोगशाला बनाने की जहमत नहीं उठाई है । अब जाकर ताजमहल की तर्ज पर एक प्रयोगशाला रूद्रप्रयाग में बन पाई है । यूपी और हिमाचल की प्रयोगशालाओं के भरोसे मिलावट के नमूने जांचने का काम चलता रहा है । इनमें से भी नमूनों को बीच में बदलने का खेल विभाग कर्णधार करते रहे हैं । स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का आलम यह है कि डीजी हैल्थ डाॅ. सीपी आर्य को जब मिलावट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते जवाबदेही की गेंद जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की ओर सरकार दी । उन्हें खाद्य निरीक्षकों को लेकर बुनियादी जानकारी तक नहीं थी । उधर, स्पैक्स संस्था का दावा है कि वह पिछले 10 साल से मिलावटखोरी के सर्वे की रिपोर्ट डीजी हैल्थ को भेजती रही है लेकिन उसकी रिपोर्ट पर कभी कोई नहीं हो पाई । इस बार वह मुख्यमंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक को रिपोर्ट की प्रति भेज रहे हैं ।

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

खंडू़ड़ी की राह पर निशंक!



क्या मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की जनता से मिलने की इच्छाएं खत्म हो चुकी हैं ? जब-तब फरियाद लेकर आ धमकने वाले लोग क्या अब उनकी आंखों में चुभने लगे हैं ? पब्लिक के जहां-तहां उन्हें घेर लेने से क्या उनका दम घुटने लगा है ? या फिर तीन महीने के उनके शासन में सरकारी मशीनरी इतनी चुस्त-दुरुस्त हो चुकी है कि अब लोगों को मुख्यमंत्री के घर का रास्ता नापने की जरूरत नहीं है! अगर यह सब झूठ है तो फिर मुख्यमंत्री के ठिकानों पर चैकसी का पहरा क्यों बैठा दिया गया ? आखिर जनता को मुख्यमंत्री से दूर रखने वाले ये कौन लोग हैं? क्या निशंक जनरल खंडूड़ी की राह पर हैं ? ये वे सवाल हैं जो सचिवालय से लेकर राजनीति के गलियारों में गूंज-गूंज कर जवाब मांग रहे हैं । सीएम के टुकड़ों पर पलने वाली एक लाॅबी फिर सत्ता का मखमली जाला बुनने में कामयाब हो रही है, जिसे पूर्व में जनरल खंडूड़ी के लिए बुना गया था । इसी मखमली खोल के जाले में खंडूड़ी ऐसे उलझे थे कि फिर चाहकर भी बाहर नहीं निकल पाए । सत्ता से बाहर होने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि जनता उनसे कितने पीछे छूट गई । कहा जा रहा है कि पहले ही दिन जनता से मिलने का रिकार्ड बनाने वाले निशंक अब खंडूड़ी की राह पर हैं । मुख्यमंत्री को सुरक्षा के खोल में बंद रखने की साजिश रचने वाले बाखूबी जानते हैं कि निशंक के लिए जनता आॅक्सीजन की तरह है, जिसके बगैर वह घुटन महसूस कर सकते हैं ।
डा. रमेश पोखरियाल निशंक आज जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे उनके व्यक्तित्व की खूबियों का खास योगदान हैं । खासतौर पर जनता और उनके बीच का सीधा संवाद उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ाने का सबसे बड़ा सूत्र रहा है । आज भी दुरूह माने जाने वाली उनकी विधान सभा के लोग उनकी इस खूबी के मुरीद हैं । अपने राजनीतिक जीवन में वे जहां और जिस स्थिति में रहे, जनता को सर्वोपरि मानने में उन्होंने कभी कोई कोसर नहीं छोड़ी । यही वजह रही कि इसी जनता की ताकत से निशंक कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए । मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी ताजपोशी में उनके लोकप्रिय व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । मुख्यमंत्री बनने के बाद पब्लिक के लिए सत्ता के दरवाजे जिस उदारता के साथ खुले, उसने निशंक की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए । उनके इस उदार आचरण ने जनता और मुख्यमंत्री के बीच बने सभी बांध तोड़ डाले । फरियादियों का सैलाब राज्य सचिवालय से लेकर उनके यमुना कालोनी आवास तक बाढ़ के पानी की तरह फूट पड़ा । यह मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व का ही जादू था लोग उनसे बगैर काम के भी मुलाकात करने आए और मुख्यमंत्री उनसे पूरी विनम्रता के साथ मिले भी । एक दिन में हजारों मुलाकातियों के आने का कीर्तिमान भी निशंक के ही नाम है । यह सिलसिला कुछ माह चलने के बाद अब ऐसा क्या हुआ कि मुख्यमंत्री के दर्शन जनता के लिए दुर्लभ हो चुके हैं । फरियादी उन्हें ढूंढ रहे हैं, लेकिन कड़ा सुरक्षा घेरा उन्हें उनके पास जाने से रोक रहा है । जलसों में जनता उन्हें ललचाई आंखों से देख तो सकती है, लेकिन संवाद नहीं कर पाती । पहले लोग उनके आवास पर बने पंडाल में जुटते थे जहां सीएम बारी-बारी से सबके हाल-चाल पूछते थे। उनकी दिक्कतों के समाधान के दिशा-निर्देश देते थे । लेकिन पिछले करीब डेढ़ महीने सेे ये शिकायतें भी आम हो चुकी हैं, कि जानबूझकर पब्लिक को चाय पिलाने के बहाने कमरे में बैठा दिया जाता है, और जब तक वे चाय निपटाते हैं, मुख्यमंत्री का काफिला कहीं का कहीं निकल जाता है । हाथ मलने के सिवाय पब्लिक के पास कुछ नहीं लगता । सचिवालय में भी पाबंदी कड़ी कर दी गई है । आम आदमी तो यहां मुख्यमंत्री से मिलने का ख्वाब ही छोड़ दे । उसके लिए जनता दरबार जो है । संयोग से अगर दरबार सज गया तो हो जाएगी सीएम साहब से मुलाकात, वरना इंतजार कीजिए एक और दरबार सजने का । सचिवालय भवन का चैथा तल जहां मुख्यमंत्री और उनके नवरत्न विराजते हैं, पर जनरल राज की छाया पड़ चुकी है । यहां सीएम साहब से मुलाकात करना तो दूर उनके चेलों के भी दीदार हो जाएं तो गनीमत मानिएगा । उनके दरवाजे की देहरी लांघने के लिए भी रेड कार्ड एंट्री अनिवार्य कर दी गई है । सीएम साहब से मिलने के लिए अब टाइम लेना जरूरी हो गया है । अब टाइम किस टाइप की जेंट्री को मिलेगा, यह भी समझ लेना जरूरी है ।टाइम दिलाने के लिए मुख्यमंत्री के खासमखासों की सिफारिश आवश्यक है । अब नवरत्नों पर ही सारा दारोमदार है कि मुख्यमंत्री से मुलाकात के इच्छुक किस टाइप के मुलाकातियों पर उनकी कृपा बरसती है । इस मुगालते में न रहें कि मुख्यमंत्री न सही तो उनके विशेष कार्याधिकारी से ही मुलाकात हो जाएगी । अब उनसे मिलना भी इतना आसान नहीं रहा । दरअसल चैथे तल में विराजमान ओएसडीओं से मिलने के लिए भी रेड कार्ड कटवाना होगा और रेडकार्ड मिलना ओएसडी की इच्छा पर निर्भर है कि वह मुलाकात के इच्छुक हैं या नहीं । इस पूरी राम कहानी का कुल जमा निचोड़ यह है कि जनता को मुख्यमंत्री से दूर करने वाले अपना तो उद्धार कर रहे हैं, लेकिन उनकी हरकतें 2012 में छिड़ने वाले चुनावी कुरूक्षेत्र के लिए रणनीतिक नहीं मानी जा रही है । सरकार और पार्टी भलीभांति जानते हैं कि 2012 के चुनाव के लिए बहुत ज्यादा वक्त नहीं है । मुख्यमंत्री निशंक के पास इतना अधिक वक्त नहीं है कि वह जनता से फासला बनाने का जोखिम उठा सकें । लेकिन नौकरशाही उन्हें इतने छोटे-छोटे और गैर मामूली व्यस्तताओं में उलझा रही है, कि उनके पास जनता के दुख-दर्द सुनने की फुरसत ही नहीं है । ताज्जुब है कि राजनीति के माहिर निशंक जनता से उन्हें दूर ले जाने वालों की साजिश क्यों नही समझ पा रहे हैं । उन्हें यह जान लेना चाहिए कि मिशन 2012 के लिए उनके पास वक्त बहुत थोड़ा है । इस थोड़े वक्त को अगर उन्होंने फिजूल की व्यस्तताओं में खो दिया तो फिर पछताने के सिवाय कुछ नहीं बचेगा! मुख्यमंत्री के समर्थक चाहे जो दलीलें दें, लेकिन उन्हें भी यह समझ लेना चाहिए कि ‘यह पब्लिक है सब जानती है!’

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

बाबरी विध्वंस के रोज जुटेगा भाजपाइयों का कुंभ

विवाह समारोह के बहाने भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री धन सिंह रावत के घर खिर्सू नौगांव में छह दिसंबर को भाजपाई दिग्गजों का कुंभ जुटने जा रहा है । उनकी दावत में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से लेकर प्रदेश के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों और मुख्यमंत्री के आने को लेकर राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गरम हो उठा है । इसे श्रीनगर विधान सभा पर 2012 में होने वाले चुनावी महाभारत से जोड़कर देखा जा रहा है ।
धन सिंह रावत आरएसएस के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं । विद्यार्थी परिषद से प्रशिक्षित रावत को संगठन में लाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी माने जाते हैं । इसीलिए उन पर जब-तब कोश्यारी खेमे का ठप्पा लगता रहता है । उनकी शादी में दो पूर्व मुख्यमंत्री और खुद मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी समेत प्रदेश के कई भाजपाई दिग्गजों ने हाजिरी देकर बताया कि भाजपा में उनकी क्या अहमियत है । अब शादी के लगभग एक महीने बाद खिर्सू के पास स्थित उनके पैतृक गांव नौगांव में ‘डिनर डिप्लोमेसी’ जैसा आयोजन हो रहा है । उन्होंने शादी के बाद होने वाली इस दावत में भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को दावतनामा भेजा है । उनके इस न्योते को कबूल करने वालों में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लोक सभा में भाजपा की उपनेता सुषमा स्वराज व पार्टी के अन्य कद्दावर नेता भी शामिल हैं । देहरादून से उनकी दावत में हिस्सा लेने के लिए मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक जाएंगे ही, साथ ही तीनों पूर्व मुख्यमंत्री भी दावत छकने के लिए नौगांव में होंगे । पार्टी सूत्रों की मानें तो पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल व कई मंत्रियों समेत पार्टी के कई नेता इस मौके पर मौजूद रहेंगे । नौगांव के पास वीआईपी नेताओं का उड़नखटोला उतराने के लिए बाकायदा हैलीपैड बनाया जा रहा है । दावत में पार्टीस्तर से ग्राम प्रधान, पंचायत प्रतिनिधियों सहित भाजपा के जिले व मंडल स्तर के नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी जुटाने के लिए कोशिशें की जा रही हैं । विश्वस्त सूत्रों का मानना है कि इतने बड़े जमावड़े को जुटाने के पीछे सिर्फ शादी की दावत एकमात्र कारण नहीं हो सकती और न ही धन सिंह पार्टी के इतने हाईप्रोफाइल नेता रहे हैं कि वह अपनी शादी की दावत को शक्ति परीक्षण में बदल दें । माना जा रहा है कि यह सारी बिसात 2012 के विस चुनाव में श्रीनगर सीट पर छिड़ने वाले महाभारत के लिए बिछाई जा रही है । मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर विरोधियों के कान खड़े कर दिए हैं । इसलिए सूत्र इस जमावड़े को उनकी चुनाव लड़ने की घोषणा से जोड़कर भी देख रहे हैं । सूत्रों का कहना है कि इस बहाने मुख्यमंत्री माहौल का जायजा ले सकते हैं । यह अजीब इत्तेफाक नहीं है कि छह दिसंबर को होनी वाली इस दावत के दिन बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था और भाजपा इसे कुछ साल तक शौर्य दिवस के रूप में मनाती रही है । ऐसे समय में जब लिब्राहन कमीशन की रिपोर्ट देश भर में चर्चा का विषय बनी हुई है तब बाबरी विध्वंस के दिन भाजपा नेताओं का यह जमावड़ा खबरों के फोकस में रहने वाला है ।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

पर्यावरण पर शिमला घोषणा पत्र जारी


हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हिमालय में टिकाऊ विकास के लिए शिमला घोषणापत्र जारी करते हुए कहा कि हिमालयी राज्यों को मिलजुलकर मौसम परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए । मुख्यमंत्रियों के शिखर सम्मेलन ने हिमालयी क्षेत्रों में टिकाऊ विकास के लिए एक फोरम गठित करने पर आम सहमति व्यक्त की । सम्मेलन में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पर्वतीय विकास मंत्रालय स्थापित करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि केंद्र पर्यावरण प्रतिपूर्ति के रूप में हर साल उत्तराखंड के 10 हजार करोड़ रुपये दे ।
शिखर सम्मेलन में हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हिमालयी राज्यों से अपील की कि वे हिमालयी क्षेत्रों में आ रहे मौसमी परिवर्तनों का मुकाबला करने के लिए संस्थागत ढांचा तैयार करने के लिए आगे आएं ताकि विभिन्न राज्यों में सरकारों द्वारा उठाए जा रहे कदमों की जानकारी दूसरे राज्यों को मिल सकें । उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में होने वाले शोधों की जानकारी को भी बांटा जाना चाहिए । धूमल ने जोर दिया कि हिमालयी राज्यों को आपस में तालमेल स्थापित करना होगा । हिमालय दुनिया के मौसम और पर्यावरण को अपने ढंग से प्रभावित करता है, इसलिए यहां होने वाले मौसमी बदलावों का असर भी विश्वव्यापी होगा ।
उन्होंने इस मुद्दे पर शिमला घोषणापत्र जारी करते हुए टिकाऊ हिमालयी विकास पर एक साझा फोरम बनाने की अपील की जिस पर शिखर सम्मेलन ने अपनी मंजूरी की मुहर लगा दी । सम्मेलन में मौसमी परिवर्तनांे से पड़ रहे प्रभावों पर शोध कार्यों में तेजी लाने, जल स्रोतों के प्रबंधन, शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने, परिवहन व्यवस्था, पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन के साथ-साथ हरियाली को एक उद्योग और व्यवसाय के रूप में प्रमोट करने का संकल्प व्यक्त किया गया ।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने केंद्र में पर्वतीय विकास मंत्रालय के गठन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इस विभाग के गठन से ही केंद्रीय स्तर पर हिमालय के लिए अलग एवं विशिष्ट नियोजन का ढांचा तैयार हो सकेगा । उन्होंने चिंता व्यक्त की कि हिमालय जो चेतावनी दे रहा है उसे दिल्ली में भी गौर से सुना जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्य देश के प्रदूषण को नियंत्रित करने में जो अमूल्य योगदान दे रहे हैं उसकी प्रतिपूर्ति करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कोई वैज्ञानिक मैकेनिज्म विकसित किया जाना चाहिए । केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि हिमालय क्षेत्र में हो रहे जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेते हुए प्रधानमंत्री जल्द ही हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विचार विमर्श करने वाले हैं ।

नाफ़रमानी पर उखड़ी विजया


मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक भले ही उत्तराखंड के हर गांव को सड़कों से जोड़ने की हसरत रखते हों, मगर ग्रामीण विकास विभाग के अभियंताओं की यह ख्वाहिश शायद नहीं है । उनकी अरूचि और नकारेपन की गवाही दे रहे हैं सड़क योजनाओं के वे आंकड़े जिन्हें देखकर ग्राम विकास राज्यमंत्री विजया बड़थ्वाल दंग रह गई । यह सुनकर उनका परा चढ़ गया कि लक्ष्य पर रखी गई 58 योजनाओं में से सिर्फ पांच ही सिरे चढ़ पाईं । सितंबर महीने तक सिर्फ 24 बसे गांवों को ही संपर्क मार्गों से जोड़ा जा सका जबकि लक्ष्य 110 गांवों को जोड़ने का है ।
शुक्रवार को राज्यमंत्री ने विधानसभा में एक समीक्षा बैठक बुलाई थी । बैठक में आला अफसरानों के अलावा फील्ड से तमाम अभियंता भी पहंुचे थेे । राज्यमंत्री ने जैसे-जैसे सड़क योजनाओं का हिसाब लेना शुरू किया, अभियंताओं के चेहरे का रंग उतरने लगा । आंकड़े विभागीय सुस्ती की पोल खोल रहे थे । बैठक के दौरान जब यह बताया गया कि 58 योजनाओं में से 13 योजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य सितंबर 2009 तक रखा गया था लेकिन इनमें से पांच ही पूरी हो पाई तो यह सुनकर राज्यमंत्री खासी नाराज हुईं । बेहद कड़क अंदाज में उन्होंने अफसरों को चेताया कि गांवों को सड़कों से जोड़ना मुख्यमंत्री की सर्वोच्च प्राथमिकता है, यदि सड़क निर्माण में कोई ढिलाई बरती गई तो अधिकारी कार्रवाई से बच नहीं पाएंगे । उन्होंने हिदायत दी कि किसी भी सूरत में आवंटित योजनाओं को इस साल दिसंबर तक पूरा हो जाना चाहिए । इस दौरान वह अपने गृह जिले की प्रस्तावित योजनाओं का ब्यौरा तलब करने से भी नहीं चूकी । उन्होंने जनपद की नौंढ़खाल से मालाकोटा मार्ग में आ रहे सेतु की डीपीआर तत्काल यूआरआडीडीए को भेजने और आयता-चरेख मोटरमार्ग को जनवरी 2010 तक पूर्ण करने के निर्देश दिए । वह इस सूचना से भी नाराज थीं कि 2009-10 के दौरान 110 में से अभी तक सिर्फ 24 बसे गांवों को ही संपर्क मार्गों से जोड़ा जा सका । उन्होंने उन ठेकेदारों को काम आंवटित करने पर रोक लगाने के निर्देश दिए जिनकी परफारमेंश बेहद ढ़ीली है । उन्होंने कहा कि ऐसे ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड कर उन पर पेनल्टी लगाई जाए ।

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

अपने खेतों की सुध लो प्रवासियों

यूं तो प्रदेश का उद्यान विभाग राज्य बनने के बाद से मृत पड़ा हुआ है लेकिन अब प्रदेश में हार्टीकल्चर को नया चेहरा देने के लिए सरकार प्रवासी उद्यान योजना लाने पर विचार कर रही है । इस योजना पर अगले दस सालों में 81 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है ।
उत्तराखंड का उद्यान विभाग राज्य के उन विभागों में शामिल है जो अफसरशाही के जनविरोधी रवैये के कारण अंतिम सांसे गिन रहा है । लगभग 3500 कर्मचारियों और अफसरों के इस विभाग के पास हालांकि प्रदेश में बागवानी क्रांति करने का जिम्मा है लेकिन विभागीय मंत्रियों और विभागीय अफसरों ने बागवानी विकास के बजाय फाइलों में बाग उपजाए और राज्य और केंद्र सरकार का करोड़ों रुपये बागवानी विकास के नाम पर डकारते रहे । वह भी तब जब पड़ोसी राज्य हिमाचल में बागवानी ने आम लोगों के जीवन स्तर में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया । हिमाचल में समृद्धि का जो रुख आज चमक रहा है वह बागवानी का ही करिश्मा है ।
हैरानी की बात यह है कि प्रदेश सरकार कर्मचारी और अफसरों पर हर साल 50 करोड़ रुपये खर्च करती है लेकिन बागवानी विकास के नाम पर उसके पास मात्र 14 करोड़ रुपये हैं । इसमें केंद्र से टेक्नोलाजी मिशन से मिलने वाले 20 करोड़ रुपये भी जोड़ दिए जाएं तब भी बागवानी पर 34 करोड़ रुपये ही खर्च होते हैं । बागवानी विभाग को प्रदेश के निठल्ले और भ्रष्ट विभागों में गिना जाता है । प्रदेश के बागवानों को कोई सेवा देना तो दूर उल्टे यह विभाग बागवानों को मिलने वाली सहायता को ही चट कर जाता है । पचास करोड़ रुपये वेतन भत्तों पर खर्च करने के बाद भी बागवानों के लिए यह विभाग निरर्थक और अनुपयोगी है । इसीलिए बीच में यह सुझाव भी आया था कि वेतन भत्तों पर इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बजाय सरकार को पचास करोड़ रुपये सीधे ग्रामीणों को उसान लगाने के लिए दे देने चाहिए । हालांकि यह योजना सिरे नहीं चढ़ी लेकिन अब सरकार सीधे ग्रामीणों को भागीदार बनाने की सोच रही है ।
प्रवासी उद्यान योजना के तहत प्रदेश सरकार ऐसे प्रवासियों के साथ 10 वर्ष के लिए एमओयू करेगी जो खुद खेती नहीं कर रहे हैं । ऐसे प्रवासी किसानों को मात्र 400 रुपये प्रति नाली की दर से एकमुश्त निवेश करना होगा । जबकि राज्य सरकार दस वर्ष में 16 करोड़ रुपये निवेश करेगी । 10 साल तक सरकार ही इन खेतों की देखभाल करेगी और इससे होने वाली आय में भूस्वामी और सरकार का हिस्सा आधा-आधा होगा । 11वें वर्ष पूर्ण रूप से तैयार यह बगीचा भूस्वामी को लौटा दिया जाएगा । उसान विभाग के सूत्रों का कहना है कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार तो पैदा होगा ही साथ ही पलायन के कारण पहाड़ के गांवों की बंजर होती जा रही जमीन को नया जीवन मिलेगा । विभागीय सूत्रों का कहना है कि इन बगीचों की देखभाल उसी गांव का निवासी उसान मित्र करेगा ।

500 करोड़ का झटका, विभाग बेखबर


सेब के शौकीन अगर हरसिल के सेब का इंतजार कर रहे हैं तो उनके लिए बुरी खबर। इस बार वे हरसिल के गोल मटोल रसीले सेब का जायका लेना तो दूर उसके दीदार को ही तरस जाएंगे। बेरहम मौसम ने उत्तराखंड के पहाड़ों में ऐसी तबाही मचाई है कि सेब की 75 फीसदी से ज्यादा फसल नष्ट हो गई है। खराब मौसम की इस मार से सेब की 800 से 900 करोड़ रुपये की आर्थिकी को जबर्दस्त धक्का पहुंचा है। जहां किसानों को सीधे-सीधे 400 करोड़ रुपये का झटका लगा है वहीं 600 करोड़ रुपये की आर्थिकी चौपट हो गई है। हैरत में डालने वाली बात यह है कि सेब की फसल की इस भारी तबाही का उद्यान विभाग के पास कोई आंकलन नहीं है। फिलहाल उसकी फाइलों में इस साल सेब उत्पादन में पिछले साल का रिकार्ड टूटने वाला है। विभाग ने बगैर जमीनी सच्चाई जाने इस सीजन में पिछले साल से ज्यादा सेब उत्पादन का अंदाजा लगा रखा है।
लगता है कि उत्तराखंड की सरकार और उसके नेता अपने भाषणों में ही राज्य की बागवानी का उद्धार करते रहेंगे। हकीकत इससे एकदम जुदा है। दरअसल सेब राज्य के नाम से ख्याति हासिल कर चुके हिमाचल की तरह उत्तराखंड में सेब उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। राज्य के उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी, पौड़ी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जनपदों की जलवायु सेब के काफी मुफीद मानी जाती है। विशेषज्ञों की राय में सेब उत्पादन के क्षेत्र में उत्तराखंड में इतनी अधिक संभावनाएं हैं कि यदि सरकार इस ओर खास ध्यान दे तो यह राज्य हिमाचल को पीछे छोड़ सकता है। हिमाचल में सेब की अर्थव्यवस्था 2000 करोड़ रुपये की है। मौसम की मार से इस बार हिमाचल का सेब नहीं बच पाया। सामान्य स्थितियों में वहां सेब की तीन करोड़ पेटियों का उत्पादन होता है। लेकिन इस बार सेब का उत्पादन दो करोड़ पेटियों का आंकड़ा भी मुश्किल से छू पाएगा। इस अप्रत्याशित घाटे के बावजूद हिमाचल के बागवानों के चेहरे पर वैसी उदासी नहीं है। उसे मालूम है कि कम उत्पादन के बावजूद उंदा विपणन व्यवस्था की मदद से वह अपने घाटे को जैसे-तैसे पूरा कर ही लेगा। ओलापात से खराब सेब को सरकार की एजेंसी एचपीएमसी खुद उनके गांव पहुंचकर सेब उठवा लेगी। लेकिन उत्तराखंड के बागवानों की कौन सुध लेगा ? राज्य बन जाने के बाद भी उन्हें भगवान का आसरा है। इस सीजन में इंद्रदेव क्या रुठे बगीचों से सेब की फसल ही साफ हो गई। पहले कम बर्फबारी से पर्याप्त 1600 घंटे चिलिंग आर्वस नहीं मिले, उस पर फ्लावरिंग पर ओलापात हो गया। जब सेब के पनपने का वक्त आया तो रही-सही कसर सूखे ने पूरी कर दी। उत्तरकाशी धराली के सेब बागवान जयेन्द्र सिंह पंवार जो जिला पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं, का कहना है कि धराली से हरसिल के मध्य 60 हजार पेटियां सेब का औसत उत्पादन है। लेकिन खराब मौसम के चलते 10 हजार पेटी सेब का उत्पादन ही हो पाएगा। यानी 75 फीसदी सेब की फसल चौपट हो चुकी है। उनका कहना है कि फ्लावरिंग के दौरान ओला गिरने और फल बनने के वक्त सूखा पड़ने से सारी फसल नष्ट हो गई। पंवार की इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि विपदा की घड़ी में उद्यान विभाग का कोई कारिंदा उनकी सुध लेने तक नहीं पहुंचा। न मंत्री को फुरसत लगी न ही अफसरों को। पंवार की भावनाओं ने साफ कर दिया है कि सरकार को हरसिल के सेब पर इतराना छोड़ देना चाहिए। मंत्रियों और साहबों के दफ्तरों में सेब की तस्वीरें टांगकर सेब की खेती को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता, इसके लिए धरातल पर उतरकर ईमानदार प्रयास जरूरी हैं जो फिलहाल राज्य के किसानों की किस्मत में नहीं है। जिस विभाग पर सेब की खेती के उद्धार को जिम्मा है, वह फाइलों में सेब उगा रहा है। उसकी फाइल में वर्ष 2007-08 में 1.27 लाख मिट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था। इस साल उसने 1.32 लाख मिट्रिक टन सेब उत्पादन का आंकड़ा तैयार कर रखा है। सूखे से कितनी फसल तबाह हो चुकी है, यह आंकड़ा जुटाने की भी विभाग को फुरसत नहीं है। लेकिन हकीकत यही है कि विभाग चाहे अपने कागजों में सेब की फसल कितनी ही बढ़ा दे लेकिन जयेन्द्र् सिंह पंवार सरीखे बागवानों के खेतों में सेब मर रहा है।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

चार हजार वर्कचार्ज कर्मियों को नई पगार


निशंक कैबिनेट ने आज छठे वेतनमान की राह तक रहे वर्कचार्ज कर्मियों और उच्च शिक्षा से जुड़े अध्यापकों की नई पगार के लिए खजाने का मुंह खोल दिया । विभिन्न विभागीय कर्मियों की वेतन विसंगति के मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई है । इसके अलावा गढ़वाल विवि की तर्ज पर देहरादून में नई यूनिवर्सिटी स्थापित करने का निर्णय लिया गया है । यह विवि दून यूनिवर्सिटी से अलग होगा । कैबिनेट ने हर न्याय पंचायत स्तर पर एक गांव को अटल आदर्श योजना के तहत विकसित करने का निर्णय लिया है ।
मुख्यमंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक की अध्यक्षता में हुई बैठक में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग में कार्यरत 4000 वर्कचार्ज कर्मियों को छठे वेतनमान के अनुरूप पगार देने का निर्णय लिया गया । मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे के मुताबिक, पहली जनवरी 206 से 3200 रुपये वेतन लेने वाले वर्कचार्ज कर्मी को अब 7266 रुपये मिलेेंगे वहीं पूर्व में 8000 रुपये वेतन लेने वाले को 19080 रुपय वेतन मिलेगा । इससे सरकारी खजाने पर सालाना पांच करोड़ रुपये का बोझ पडे़गा । कैबिनेट ने छठे वेतन की राह तक रहे सरकारी महाविसालयों के शिक्षकों की मुराद पूरी कर दी है । गढ़वाल विवि और पंतनगर विवि के शिक्षकों को भी सरकार नया वेतनमान देने को राजी हो गई है । अलबत्ता उन्हें केंद्र सरकर द्वारा घोषित कम्पलीट पैकेज देने से कैबिनेट हाथ खडे़ जरूर कर दिए हैं । यानी विवि शिक्षकों को रिटायर्डमेंट की आयु 65 वर्ष किए जाने का लाभ नहीं मिल पाएगा । कैबिनेट ने विभागों में उन श्रेणियों के कर्मियों को राहत दी है जिन्हें वेतन विसंगति के चलते नये स्केल का पूर्ण लाभ नहीं मिल पा रहा है
। बैठक में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया जिसमें सचिव वित्त के अलावा, अपर सचिव वित्त, विभागीय प्रमुख, वित्तीय मामलों का कोई जानकार व्यक्ति को शामिल किया जाएगा । अपर सचिव वित्त जो वेतन मामलों को देखते हैं को कमेटी का सदस्य सचिव बनाया गया है । समिति की कोई टाइम लिमिट तय नहीं की गई है ।

कैबिनेट ने देहरादून में नई यूनिवर्सिटी स्थापित करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है । मुख्य सचिव के मुताबिक, गढ़वाल विवि के केंद्रीयकरण के उपरांत नये विवि की जरूरत महसूस की जा रही थी । तब तक वैकल्पिक तौर पर तकनीकी विवि को गढ़वाल विवि से संबद्ध रहे सभी संस्थानों के की संबद्धता के लिए अधिकृत किया गया है । नये विवि की स्थापना के उपरांत सभी व्यावसायिक व अन्य पाठ्यक्रमों की संबद्धता का दायित्व स्थानांतरित हो जाएगा । यह विवि दून यूनिवर्सिटी से हटकर होगा । मंत्रिमंडल ने प्रत्येक न्याय पंचायत में एक गांव को अटल आदर्श योजना के तहत विकसित करने का निर्णय लिया है । इसके लिए गांवों को चरणबद्ध ढंग से चिन्हित होंगे । इन गांवों को बिजली, पानी, सिंचाई, विपणन, सहकारिता, माध्यमिक शिक्षा, स्वच्छता समेत कुल 15 क्षेत्रों में परिपूर्ण किया जाएगा । सरकार की मंशा इन गांवों को ‘रूरल हब’ बनाने की है । इसके अलावा कैबिनेट ने जड़ी-बूटियों और एग्रीकल्चर वेस्ट से निर्मित वस्तुओं पर चार फीसदी वैट वसूलने का निर्णय भी किया ।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

उत्तराखंड सरकार और सचिवालय संगठन में ठनी

एक निलंबित कर्मचारी की बीमारी के बहाने राज्य सरकार को आंखें दिखाना सचिवालयकर्मियों को खासा महंगा पड़ने वाला है । सरकार ने जांच कराकर पता लगा लिया है कि निलंबन की कार्रवाई के बाद उक्त कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया । उसकी बीमारी के बहाने जिस तरह से दबाव की संगठन नेताओं द्वारा राजनीति खेली गई उसे मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बेहद गंभीरता से लिया है । इसका आभास शासन की कड़क शैली से भी हो रहा है । संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का सरकार जवाबतलब कर चुकी है । साथ ही मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय का यह कहना कि सचिवालय में जल्द ही कार्य दिवसों का स्वरूप ‘फाइव डेज’ के बजाय ‘सिक्स डेज’ होगा, को कर्मचारियों की ‘प्रैशर टैक्टिस’ का जवाब माना जा रहा है । इस पर भी कर्मचारियों के रुख में बदलाव नहीं आया तो सरकार आगे चलकर ट्रांसफर पालिसी पर भी विचार कर सकती है । यानी सचिवालयकर्मी सचिवालय में नौकरी के एकाधिकार से भी हाथ धो बैठेंगे ।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक शायद ‘भय बिन होत न प्रीत’ के फार्मूले पर चल पडे़ हैं । इसी फार्मूले का नतीजा है कि जिलों व ब्लाकों से लेकर राज्य सचिवालय तक सभी जगह छापे मारे जा रहे हैं । इस अभियान में खुद मुख्यमंत्री भी शामिल हैं । वे राज्य सचिवालय में दो बार छापे मार चुके हैं । दोनों ही मौकों पर उन्होंने कई सचिवों से लेकर कर्मचारियों तक को अपने कक्षों से नदारद पाया । नौकरशाही के गढ़ में छापे मारने का साहस करने वाले निशंक पहले मुख्यमंत्री हैं । इससे पहले किसी भी मुख्यमंत्री ने उन्हें छेड़ने का साहस नहीं किया था । वे तो अभी तक सरकार के सबसे करीब होने के विशेषाधिकार का लाभ उठाने के आदी रहे हैं । पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने जब समाज कल्याण अनुभाग के एक समीक्षा अधिकारी को बगैर छुट्टी के नदारद पाये जाने पर निलंबित किया तो सचिवालय कर्मी संगठन ने उसकी बीमारी के बहाने मुख्यमंत्री के अभियान के विरोध में प्रदर्शन किया और आंदोलन की धमकी तक दे डाली । जांच कराने पर पता चला कि निलंबित कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके बाद दबाव की राजनीति खेली गई । इसे मुख्यमंत्री ने बेहद गंभीरता से लिया । सूत्रों की मानें तो संगठन की ‘प्रैशर टैक्टिस’ का जवाब देने के लिए सरकार ने कवायद शुरू कर दी है । जल्द ही सचिवालय कर्मचारियों के केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर ‘फाइव डे वीक’ का विशेषाधिकार छिनने वाला है । ऐसा हुआ तो सचिवालयकर्मियों को साल भर में 48 छुट्टियों की कटौती का जोरदार झटका लगेगा । इतना नहीं अगर सरकार को जरा सा भी आभास हुआ कि वे समयबद्ध और तीव्र विकास के आडे़ आ रहे हैं तो इसका तोड़ भी सरकार ने ढूंढ लिया है । ऐसा मुमकिन हो सकता है कि सरकार सचिवालय में भी ट्रांसफर पालिसी लागू कर दे । यानी निकम्मे कर्मचारियों को फील्ड में दौड़ा दिया जाए । बहरहाल सरकार द्वारा संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का जवाबतलब किए जाने के बाद कर्मचारियों का पारा और ज्यादा चढ़ गया है । वे अब आंदोलन की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। यह स्थिति कम से कम जनता जर्नादन के लिए ठीक नहीं है। सरकार-कर्मचारियों के बीच खाई बढ़ाने के बजाय इसे पाटने पर जोर होना चाहिए ।