शनिवार, 17 जुलाई 2010

सरकार के प्रचार पर जनरल आगबबूला


पावर प्रोजेक्टों में हुए घोटाले की पूरी जिम्मेदारी जनरल पर डालने की सरकार की कोशिशों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी इतने आगबबूला हुए कि कर इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर वह प्रेस कांफ्रेस करने पर आमादा हो गए थे। उनके इस इरादे की भनक जैसे ही भाजपा आलाकमान को दिल्ली में लगी उसके हाथों के तोते उड़ गए। आनन फानन में जनरल को मनाया गया और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने सरकार के मुखिया को आड़े हाथों लेते हुए फौरन जनरल से मिलकर स्थिति साफ करने की हिदायत दे डाली।


भाजपा के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार शुक्रवार की सुबह के अखबारों में पनबिजली प्रोजेक्टों को रद्द करने समाचार के साथ सरकार द्वारा यह समाचार भी छपवाया गया कि प्रोजेक्टों का विज्ञापन जनरल के समय जारी किया गयांइस माचार से यह भी ध्वनित हो रहा था कि प्रोजेक्टों में हुए घपले के लिए खंडूड़ी और उनकी सरकार जिम्मेदार है। इस खबर को पढ़कर जनरल आगबबूला होगए । उन्होने फौरन अपने विश्वसनीय नेताओं को बुलाया और आरपार की लड़ाई छेडत्रने के अपने इरादे को साफ कर दिया। बताया जाता है कि जनरल ने अपने वफादारों को साफ कह दिया कि अब पानी सर से गुजर गया है और वह निर्णायक कदम उइाने जा रहे हैं। आमतौर पर संयम न खोने वाले जनरल को इतने गुस्से में देखकर उनके समर्थक हैरान रह गए।जनरल ने कहा कि वह अपनी सार्वजनिक छवि को बचाने के लिए मैदान में उतर रहे हैं और प्रेस कांफ्रेस कर पनबिजली प्रोजेक्टों के आवंटन के मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करेंगे। प्रेस कांफ्रेस की दपूरी तैयारियां कर ली गईं। नेशनल मीडिया में पैठ रखने वाले लोगों को भी फिलर भेज दिए गए कि दोपहर तक देश भर में गूंजने वाली एक बड़ी खबर के लिए तैयार रहें। इस बीच जनरल ने भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी को फोन कर उन्हे सरकार द्वारा किए जा रहे प्रचार की जानकारी दी और बताया जाता है कि उन्होने साफ तौर पर मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया कि वह उनकी छवि खराब करने के लिय मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार खंडूड़ी ने भाजपा अध्यक्ष को बता दिया कि वह दोपहर तक होने वाली अपनी प्रेस ब्रीफिंग में पनबिजली प्रोजेक्टों की सीबीआई जांच की मांग करने जा रहे हैं उनहोने गडकरी को स्पष्ट कर दिया कि अब हालात उनके बर्दाश्त से बाहर हो चुके हैं।बताया जाता है कि गडकरी ने बार-बार जनरल से आग्रह किया कि वह थोड़ा धैर्य रखें जब जनरल तैयार नहीं हुए तो भाजपा अध्यक्ष ने उनसे कहा कि वह दो घंटा रुकें ताकि वह मुख्यमंत्री उनसे मिल सकें। इसके बाद गडकरी ने मुख्यमंत्री को फौरन जाकर जनरल को मनाने के निर्देश दिये ताकि भाजपा को एक और बार शर्मिंदगी न झेलनी पड़े।जनरल खेमे के अनुसार गडकरी ने मुख्यमंत्री की जमकर क्लास ली। गडकरी के निर्देशों को देखते हुए ही मुख्यमंत्री और उनके प्रमुख सचिव जनरल को मिलने उनके आवास पर पहुंचे। जहां जनरलउन पर जमकर बरसे और साफ कर दिया कि यदि उनकी छवि से खेलने की कोशिश की गई तो वह सार्वजनिक रुप से सीबीआई जांच की मांग करेंगे। बताया जाता है कि जनरल ने मुख्यमंत्री से यह भी पूछा कि वह बतायें कि उन्होने किसे प्रोजेक्ट दिए जाने की सिफारिश की है। इस बीच जनरल खेमे ने भी मुख्यमंत्री को घेरते हुए उनसे पूछा है कि वह बतायें कि प्रोजेक्टों के लिए कंपनियों ने 32 करोड़ रुपए किस तारीख को जमा कराए? क्या ये रुपए जनरल के कार्यकाल में जमा हुए। उनका कहना है कि जनरल सीबीआई जांच को तैयार हैं तो सरकार क्यों नहीं आगे आती?

140 करोड़ के घपले वाले पावर प्रोजेक्ट रद्द, सरकार बेनकाब

आखिरकार काफी थुक्का फजीहत के बाद उत्तराखंड सरकार ने 56 पनबिजली प्रोजेक्टों के करार रद्द कर ही दिए। एक स्थानीय पत्रिका और टीवी चैनल आज तक में इस घपले की पोल खोले जाने पर भी निडर बनी रही सरकार ने उच्च न्यायालय के खौफ से ये करार रद्द कर दिए। इस फैसले से सरकार की खासी किरकिरी हुई है तो दूसरी ओर कांग्रेस को यह मौका मिल गया है कि उसके द्वारा लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के आरोप सही थे।इस फैसले से शर्मिंदा हुई भाजपा के निशंक और खंडूड़ी खेमे आमने -सामने आ गए हैं।



न्यूज चैनल ‘‘आज तक’’ पर पनबिजली घोटाले पर अपनी सरकार को पाक साफ बता रहे मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को आखिरकार उल्टा घूमना पड़ा है।छप्पन पनबिजली प्रोजेक्टों के करार को तब भले ही वह नीति के हिसाब से बिल्कुल सही कदम बता रहे हों और आवंटन में भ्रष्टाचार से साफ इन्कार करते नजर आए हों पर अब उन्होने भी स्वीकार कर लिया है कि आवंटन में धांधलियां हुई हैं।पनबिजली परियोजनाओं को लेकर दिये गए विज्ञापन को गलत ठहरा कर निशंक ने एक तरह से अपने निशाने पर पूर्व मुख्यमं़त्री खंडूड़ी को ले लिया है। मुख्यमंत्री के करीबी और उनके समर्थक एक स्वर में कह रहे हैं कि यह घपला खंडूड़ी के मुख्यमंत्री रहते हुआ है और मौजूदा मुख्यमंत्री तो इसमें खामखां फंसाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि जनरल के कार्यकाल में ही पनबिजली प्रोजेक्ट आवंटित कर दिए गए थे।उनकी सफाई है कि मौजूदा मुख्यमंत्री ने तो इस पर केवल दस्तखत ही किए। उनके इस तर्क पर यकीन किया जाय तो यह साफ हो जाता है कि पावर प्रोजेक्टों के आवंटन में जो लेन देन हुआ है वह जनरल के ही कार्यकाल में हुआ और मौजूदा मुख्यमंत्री इस मामले में बिल्कुल पाक-साफ हैं। इसका सीधा अर्थ है कि मुख्यमंत्री के करीबी प्रकारांतर रुप से बता रहे हैं कि जनरल का दामन दागदार है। मुख्यमंत्री ने जनरल से भेंटकर और उस भेंट की खबरें मीडिया में उछलवाकर जनरल को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश भी की है। जाहिर है कि पनबिजली प्रोजेक्टों पर उठे घोटाले बवंडर को खंडूड़ी की ओर मोड़ने की कोशिशें चल रही है।


उधर जनरल खेमे का कहना है कि यदि मुख्यमंत्री यह मानते हैं कि प्रोजेक्टों का आवंटन खंडूड़ी के कार्यकाल में हुआ है तो जनरल ही नहीं बल्कि वे सभी लोग इसकी सीबीआई जांच के लिए तैयार हैं। बताया जाता है कि पनबिजली प्रोजेक्ट के आवंटन में हुए घपले के आरोपों और मीडिया में इसके उछलने से चिंतित भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पनबिजली प्रोजेक्टों से संबधित पूरी फाइल अपने साथ ले गए थे। उच्च न्यायालय में इस मामले में दाखिल याचिकाओं के नजरिये से इसके कानूनी पहलुओं का अध्ययन करने के लिए गडकरी ने इसे अरुण जेटली को सौंपा । सूत्रों के अनुसार आवंटन के सारे मामलों के अध्ययन के बाद जेटली ने गडकरी को बताया कि इसमें इतनी अनियमिततायें हैंकि सरकार को अपना बचाव करना मुश्किल होगा। बताया जाता है कि उन्होने सुझाया कि सरकार के पास इन करारों को रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। बताया जाता है कि प्रोजेक्टों के करार को बचाने की आखिरी कोशिश के तौर पर उच्चस्तरीय एक नेता ने भाजपा नेता और नामी वकील रविशंकर प्रसाद को भी यह फाइल दिखाई लेकिन उनकी राय भी जेटली की राय की तरह ही रही।इसके बाद भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री को यह करार रद्द करने का निर्देश दिया।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मुख्यमंत्री का एक और दावेदार


भाजपा आलाकमान ने पांचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय को उत्तराखंड से राज्यसभा भेजकर भविष्य की राजनीति के कई संकेत दिए हैं । तरुण विजय का कद बढ़ाकर आलाकमान ने मैदानी क्षेत्र से एक नेता को भविष्य में मुख्यमंत्री के दावेदार के रुप में चुपके से आगे भले ही बढ़ाया हो पर आरोपों के छींटों ने उनकी शुरुआत पर सवालिया निशान लगा दिए हैं । भाजपा आलाकमान द्वारा पांचजन्य के पूर्व संपादक और झंडेवालान के दूत माने जाने वाले तरुण विजय को राज्यसभा भेजे जाने से प्रदेश भाजपा के भीतर नाराजगी है । तरुण विजय का उत्तराखंड की राजनीति में कोई योगदान नहींे रहा है।वह आरएसएस के दिल्ली वाले पॉलीहाउस में पले बढ़े हैं । आलाकमान की इस अमरबेलि की जड़ें दिल्ली के अलावा कहीं नहीं हैं । हालांकि आरएसएस और आलाकमान के डर से भाजपाई जुबान नहीं खोल रहे परंतु असंतोष बरकरार है । भाजपा के कई नेता नितिन गडकरी को उनका वह बयान याद दिला रहे हैं जिसमें खुद को कार्यकर्ताओं का हितैषी बताते हुए टिकट के लिए दिल्ली की परिक्रमा न करने को कहा था । असंतुष्ट भाजपाईयों का कहना है कि पार्टी ने किसी कार्यकर्ता को राज्यसभा भेजने के बजाय अपनी कलम रोप दी है। भाजपाईयों का तर्क है कि प्रदेश में जनरल टीपीएस रावत ,पूर्व सांसद व प्रदेशाध्यक्ष बच्ची सिंह रावत, पूर्व विधायक भारत सिंह रावत, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष पूर्णचंद्र शर्मा, पूर्व मंत्री मोहन सिंह रावत गांववासी, पृथ्वी सिंह विकसित जैसे दिग्गज नेताओं और सुरेखा ध्यानी, कृष्णानंद मैठाणी,,प्रकाश सुमन ध्यानी समेत नई पीढ़ी के कई बुद्धिजीवी और अकादमिक योग्यता वाले नेताओं की पूरी पौध की उपेक्षा कर आलाकमान ने साफ कर दिया है कि भाजपा में संघर्ष करने वालों का कोई भविष्य नहीं है । पूर्व विधायक भारत सिंह रावत ने इसका खुलकर विरोध करते हुए इसे पार्टी के लिए आत्मघाती बताया । दिलचस्प बात यह है कि पहाड़ के भाजपा नेता इसे पार्टी पर मैदानी लॉबी के हावी होने के रुप में देख रहे हैं तो भाजपा की मैदानी लॉबी भी तरुण विजय को राजनीति में उतारे जाने के कदम को खुद के लिए खतरा मान रही है । पर आलाकमान ने तरुण विजय जैसे तेजतर्रार नेता को उत्तराखंड की भाजपा राजनीति में उतारकर मैदानी क्षेत्र से मुख्यमंत्री का एक भावी दावेदार तैयार करता दिख रहा है। आगामी चुनाव में मैदानी क्षेत्र में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ जाने से उत्तराखंड विधानसभा का संतुलन बदल जाने वाला है। उसका पलड़ा पहली बार थोड़ा मैदान की ओर झुका होगा। ऐसे एक मैदानी नेता को प्रोजेक्ट कर भाजपा इस इलाके में चुनावी लाभ उठाने की सोच सकती है। चुनाव की बिसात पर तरुण आलाकमान के ऐसे ही मैदानी मोहरे होंगे। बस अड़चन इतनी है कि संघ के नेता शेषाद्रिचारी ने तरुण विजय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी राजनीति की राह मुश्किल कर दी है। उन पर आरोप है कि उन्होने पांजजन्य का संपादक पद पर रहते हुए अपनी संस्था के लिए तत्कालीन भाजपा सरकार से कई एकड़ जमीन मात्र एक रुपए में लीज पर अलॉट कराई और सांसद निधि समेत कई माध्यमों से इस संस्था के लिए करोड़ों रुपए जुटाए। बताया जाता है कि इस संस्था के लिए फंड जुटाने में भाजपा के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नाम का जमकर इस्तेमाल किया गया और देहरादून और उत्तराखंड में यह संस्था आडवाणी इंस्टीट्यूट के नाम से जानी जाती है। इसमें आडवाणी की पुत्री को ट्रस्टी बनाए जाने से भी इस प्रचार को बल मिला। भाजपा नेताओं का कहना है कि पांचजन्य के इतिहास में यह पहली बार था जब उसके किसी संपादक ने व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया । उनका कहना है कि पांचजन्य के संपादक शानदार और बेदाग मूल्यों के लिए जाने जाते हैं पर इस प्रकरण से कई दशकों की उस परंपरा भी नहीं बच पाई । हालांकि अभी तक ये सिर्फ आरोप हैं और इनकी जांच से ही सच्चाई सामने आ पाएगी पर शेषाद्रिचारी जैसे बड़े और निर्विवाद नेता द्वारा आरोप जड़ने से उत्तराखंड के असंतुष्ट भाजपाई उत्साहित हैं और भविष्य में यह आरोप जरुर राजनीतिक गुल खिलायेंगे।