बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

चार हजार वर्कचार्ज कर्मियों को नई पगार


निशंक कैबिनेट ने आज छठे वेतनमान की राह तक रहे वर्कचार्ज कर्मियों और उच्च शिक्षा से जुड़े अध्यापकों की नई पगार के लिए खजाने का मुंह खोल दिया । विभिन्न विभागीय कर्मियों की वेतन विसंगति के मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई है । इसके अलावा गढ़वाल विवि की तर्ज पर देहरादून में नई यूनिवर्सिटी स्थापित करने का निर्णय लिया गया है । यह विवि दून यूनिवर्सिटी से अलग होगा । कैबिनेट ने हर न्याय पंचायत स्तर पर एक गांव को अटल आदर्श योजना के तहत विकसित करने का निर्णय लिया है ।
मुख्यमंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक की अध्यक्षता में हुई बैठक में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग में कार्यरत 4000 वर्कचार्ज कर्मियों को छठे वेतनमान के अनुरूप पगार देने का निर्णय लिया गया । मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे के मुताबिक, पहली जनवरी 206 से 3200 रुपये वेतन लेने वाले वर्कचार्ज कर्मी को अब 7266 रुपये मिलेेंगे वहीं पूर्व में 8000 रुपये वेतन लेने वाले को 19080 रुपय वेतन मिलेगा । इससे सरकारी खजाने पर सालाना पांच करोड़ रुपये का बोझ पडे़गा । कैबिनेट ने छठे वेतन की राह तक रहे सरकारी महाविसालयों के शिक्षकों की मुराद पूरी कर दी है । गढ़वाल विवि और पंतनगर विवि के शिक्षकों को भी सरकार नया वेतनमान देने को राजी हो गई है । अलबत्ता उन्हें केंद्र सरकर द्वारा घोषित कम्पलीट पैकेज देने से कैबिनेट हाथ खडे़ जरूर कर दिए हैं । यानी विवि शिक्षकों को रिटायर्डमेंट की आयु 65 वर्ष किए जाने का लाभ नहीं मिल पाएगा । कैबिनेट ने विभागों में उन श्रेणियों के कर्मियों को राहत दी है जिन्हें वेतन विसंगति के चलते नये स्केल का पूर्ण लाभ नहीं मिल पा रहा है
। बैठक में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया जिसमें सचिव वित्त के अलावा, अपर सचिव वित्त, विभागीय प्रमुख, वित्तीय मामलों का कोई जानकार व्यक्ति को शामिल किया जाएगा । अपर सचिव वित्त जो वेतन मामलों को देखते हैं को कमेटी का सदस्य सचिव बनाया गया है । समिति की कोई टाइम लिमिट तय नहीं की गई है ।

कैबिनेट ने देहरादून में नई यूनिवर्सिटी स्थापित करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है । मुख्य सचिव के मुताबिक, गढ़वाल विवि के केंद्रीयकरण के उपरांत नये विवि की जरूरत महसूस की जा रही थी । तब तक वैकल्पिक तौर पर तकनीकी विवि को गढ़वाल विवि से संबद्ध रहे सभी संस्थानों के की संबद्धता के लिए अधिकृत किया गया है । नये विवि की स्थापना के उपरांत सभी व्यावसायिक व अन्य पाठ्यक्रमों की संबद्धता का दायित्व स्थानांतरित हो जाएगा । यह विवि दून यूनिवर्सिटी से हटकर होगा । मंत्रिमंडल ने प्रत्येक न्याय पंचायत में एक गांव को अटल आदर्श योजना के तहत विकसित करने का निर्णय लिया है । इसके लिए गांवों को चरणबद्ध ढंग से चिन्हित होंगे । इन गांवों को बिजली, पानी, सिंचाई, विपणन, सहकारिता, माध्यमिक शिक्षा, स्वच्छता समेत कुल 15 क्षेत्रों में परिपूर्ण किया जाएगा । सरकार की मंशा इन गांवों को ‘रूरल हब’ बनाने की है । इसके अलावा कैबिनेट ने जड़ी-बूटियों और एग्रीकल्चर वेस्ट से निर्मित वस्तुओं पर चार फीसदी वैट वसूलने का निर्णय भी किया ।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

उत्तराखंड सरकार और सचिवालय संगठन में ठनी

एक निलंबित कर्मचारी की बीमारी के बहाने राज्य सरकार को आंखें दिखाना सचिवालयकर्मियों को खासा महंगा पड़ने वाला है । सरकार ने जांच कराकर पता लगा लिया है कि निलंबन की कार्रवाई के बाद उक्त कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया । उसकी बीमारी के बहाने जिस तरह से दबाव की संगठन नेताओं द्वारा राजनीति खेली गई उसे मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बेहद गंभीरता से लिया है । इसका आभास शासन की कड़क शैली से भी हो रहा है । संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का सरकार जवाबतलब कर चुकी है । साथ ही मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय का यह कहना कि सचिवालय में जल्द ही कार्य दिवसों का स्वरूप ‘फाइव डेज’ के बजाय ‘सिक्स डेज’ होगा, को कर्मचारियों की ‘प्रैशर टैक्टिस’ का जवाब माना जा रहा है । इस पर भी कर्मचारियों के रुख में बदलाव नहीं आया तो सरकार आगे चलकर ट्रांसफर पालिसी पर भी विचार कर सकती है । यानी सचिवालयकर्मी सचिवालय में नौकरी के एकाधिकार से भी हाथ धो बैठेंगे ।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक शायद ‘भय बिन होत न प्रीत’ के फार्मूले पर चल पडे़ हैं । इसी फार्मूले का नतीजा है कि जिलों व ब्लाकों से लेकर राज्य सचिवालय तक सभी जगह छापे मारे जा रहे हैं । इस अभियान में खुद मुख्यमंत्री भी शामिल हैं । वे राज्य सचिवालय में दो बार छापे मार चुके हैं । दोनों ही मौकों पर उन्होंने कई सचिवों से लेकर कर्मचारियों तक को अपने कक्षों से नदारद पाया । नौकरशाही के गढ़ में छापे मारने का साहस करने वाले निशंक पहले मुख्यमंत्री हैं । इससे पहले किसी भी मुख्यमंत्री ने उन्हें छेड़ने का साहस नहीं किया था । वे तो अभी तक सरकार के सबसे करीब होने के विशेषाधिकार का लाभ उठाने के आदी रहे हैं । पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने जब समाज कल्याण अनुभाग के एक समीक्षा अधिकारी को बगैर छुट्टी के नदारद पाये जाने पर निलंबित किया तो सचिवालय कर्मी संगठन ने उसकी बीमारी के बहाने मुख्यमंत्री के अभियान के विरोध में प्रदर्शन किया और आंदोलन की धमकी तक दे डाली । जांच कराने पर पता चला कि निलंबित कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके बाद दबाव की राजनीति खेली गई । इसे मुख्यमंत्री ने बेहद गंभीरता से लिया । सूत्रों की मानें तो संगठन की ‘प्रैशर टैक्टिस’ का जवाब देने के लिए सरकार ने कवायद शुरू कर दी है । जल्द ही सचिवालय कर्मचारियों के केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर ‘फाइव डे वीक’ का विशेषाधिकार छिनने वाला है । ऐसा हुआ तो सचिवालयकर्मियों को साल भर में 48 छुट्टियों की कटौती का जोरदार झटका लगेगा । इतना नहीं अगर सरकार को जरा सा भी आभास हुआ कि वे समयबद्ध और तीव्र विकास के आडे़ आ रहे हैं तो इसका तोड़ भी सरकार ने ढूंढ लिया है । ऐसा मुमकिन हो सकता है कि सरकार सचिवालय में भी ट्रांसफर पालिसी लागू कर दे । यानी निकम्मे कर्मचारियों को फील्ड में दौड़ा दिया जाए । बहरहाल सरकार द्वारा संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का जवाबतलब किए जाने के बाद कर्मचारियों का पारा और ज्यादा चढ़ गया है । वे अब आंदोलन की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। यह स्थिति कम से कम जनता जर्नादन के लिए ठीक नहीं है। सरकार-कर्मचारियों के बीच खाई बढ़ाने के बजाय इसे पाटने पर जोर होना चाहिए ।