शुक्रवार, 6 अगस्त 2010
शाबास ! टीपीएस !! शाबास ! फोनिया !!
उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां खुद को उत्तराखंड आंदोलनकारी करार देने के लिए हजारों आवेदन पत्र सरकार के पास पड़े हों वहां पूर्व ले.जन. टीपीएस रावत और पूर्व मंत्री केदार सिंह फोनिया ने लालबत्ती लेने से इंकार कर राज्य के नेताओं के सामने एक मिसाल पेश की है। प्रदेश में लालबत्ती पाने को लेकर इतनी होड़ है कि हर राजनीतिक पार्टी इससे हैरान है। भाजपा की सरकार ने इतना जरुर कर दिया है कि लालबत्तीधारी कोई सरकारी काम नहीं करेंगे पर मानदेय सरकार से लेंगे। सरकारी खजाने से होने वाले इस दस करोड़ सालाना के खर्च का औचित्य सरकार को यदि कभी न्यायालय के सामने देना पड़े तो तब पता नहीं वह इसे कैसे उचित ठहरायेगी कि धेले भर का सरकारी काम किये बिना उसने अपने कुछ नेताओं के मानदेय, गाड़ी, घोड़ा और स्टाफ पर पांच साल में पचास करोड़ फूंक डाले। मौजूदा सरकारी कानूनों के हिसाब से सरकार की एक पाई का भुगतान भी बिना किसी काम के नहीं हो सकता। लालबत्तीधारियों को उनकी हैसियत बताने के लिए हाल ही में भाजपा ने एक निर्देश जारी किया कि वे कोई सरकारी काम न करें और सिर्फ पार्टी और सरकार का प्रचार करे। बताया जाता है कि भाजपा के मंत्री लालबत्तीधारियों की हरकतों से खासे नाराज हैं। उन्होने मुख्यमंत्री से शिकायत की कि लालबत्तीधारियों ने विभागों में अपनी अलग सत्ता कायम कर ली है। दरअसल शिकायतकर्ता मंत्रिगण इसलिए ज्यादा फिक्रमंद थे कि कुछ दबंग किस्म के लालबत्तीधारियों ने मंत्रियों के बाजार में अपने खोखे डाल दिए जिससे उनके धंधे पर असर पड़ने लगा था। उधर कुछ तो मंत्रियों के मुंहलगे अफसरों की ही क्लास लेने में लग गए। सीएम ने इस शिकायत को पार्टी अध्यक्ष के पाले में खिसका दिया। पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि लालबत्तीधारी इस प्रजाति की सरकारी हैसियत शून्य है। उन्हे अब बस इतना करना है कि गनर, गाड़ी, नाममात्र का स्टाफ लेकर घूमें,फिरें, ट्रªैफिक के सिपाही को हड़काने के अधिकार के साथ मौज करें पर सरकारी काम के पचड़े में न पड़ें। इसके बावजूद लालबत्ती को लालायित लालों की तादाद में कोई कमी नहीं आई है।
ऐसी होड़ के बीच टीपीएस रावत और केदार सिंह फोनिया ने बताया कि उन्हे लालबत्ती से ज्यादा अपना सम्मान प्यारा है। उत्तराखंड की राजनीति में यह दुर्लभ घटना है। भारतीय सेना में ले0ज0 रहे टीपीएस रावत को भले ही पर्यटन मंत्री के रुप में विवादों का सामना करना पड़ा हो पर पहले हरक सिंह के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर और अब लालबत्ती पर लात मारने वाले रावत ने बताया है कि वह एक स्वाभिमानी नेता हैं। मूलतः पौड़ी जिले के धुमाकोट क्षेत्र के निवासी सेना के इस पूर्व अफसर को इस पहाड़ी मिजाज के लिए सलाम किया जाना चाहिए। पूर्व पर्यटन मंत्री केदार सिंह फोनिया उत्तराखंड में पर्यटन की गहरी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ माने जाते हैं। पौड़ी के मैस्मोर स्कूल में पूर्व मुख्यमंत्राी बीसी खंडूड़ी के सहपाठी और स्कूली मित्र रहे फोनिया अपने मूल्यों पर अड़े रहने के लिए जाने जाते हैं। उनका राजनीतिक जीवन बेदाग कहा जा सकता है। लालबत्ती की सरकारी पेशकश को ठुकराने के लिए वह जनता की ओर से शाबासी के हकदार हैं। इन दोनों नेताओं ने इतना तो बताया है कि उत्तराखंड लालबत्ती के लालायित राजनीतिक भेड़ों का ही प्रदेश नहीं है बल्कि इसके अपवाद भी हैं। हां, इतना अवश्य है कि ये दोनों ही नेता उस पीढ़ी से आते हैं जिसे हम पुरानी पीढ़ी कहते हैं जबकि उम्मीद की यह किरण नई पीढ़ी से आनी चाहिए थी।
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