हिंदी के प्रख्यात कवि लीलाधर जगूड़ी बीती एक जुलाई को सत्तर साल के हो चुके हैं। उन्होने अपना यह जन्म दिन देहरादून की उमस और शोर शराबे से बहुत दूर उत्तरकाशी में मनाया। सेना की नौकरी से लेकर रात के चौकीदार तक कई प्रकार की नौकरियां करने वाले जगूड़ी के निजी जीवन के संघर्ष हैरत में भी डालते हैं और एक मामूली घर में जन्मे एक किशोर की अजेय जिजीविषा की गवाही भी देते हैं।आखिर रात की चौकीदारी करने से लेकर साहित्य अकादमी पुरष्कार पाने तक का यह सफर यूं ही तो नहीं रहा होगा। टिहरी के बीहड़ पहाड़ में बसे धंगड़ गांव के उस अजेय किशोर को उसी की इस कविता के साथ सत्तरवें साल पर सलाम !
हत्यारा
हत्यारा पहने हुए है सबसे महंगे कपड़े
हत्यारे के सारे दांत सोने के हैं पर आंते पैदायशी
हत्यारे के मुंह में जीभ चमड़े की पर चम्मच चांदी का है
हत्यारे का पांव घायल मगर जूता लोहे का
हाथ हड्डी के मगर दस्ताने प्लेटिनम के हैं
हत्यारे के पास करने के लिए हैं कई वारदातेकं
कई दुर्घटनायें
देने को हैं कई जलसे कई समारोह
कई व्यवस्था- विरोध और कई शोक-सभाएॅं
मगर अब तो वह विचार भी देने लगा है
पहले विचार की हत्या के साथ
हत्यारा चाहता है तमाम सुंदर और मजबूत विचार
हत्याओं के बारे में
वह चाहता है जितने भी सुंदर और मजबूत विचार हों
सब उसी के हों
वह फेंके और विचार चल पड़ें
वह मारे और विचार जीवित हों
वह गाड़े और विचार फूट पड़ें
हत्यारा पूरा माहौल बदलना चाहता है
वह आए और शब्द सन्नाटे में बदल जांय
वह बोले और भाषा जम जाए
हत्या हो समारोह हो और विचार हों सिर्फ उसके
जगुड़ी जी को ढ़ेरो शुभकामनाएँ , जहाँ तक कविता का सवाल है, मै अदना क्या कहूँ , शिवाय इसके कि समय को धिक्कारती, एक बड़े कवि की बड़ी कविता। आप का आभार..
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