भाजपा आलाकमान ने पांचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय को उत्तराखंड से राज्यसभा भेजकर भविष्य की राजनीति के कई संकेत दिए हैं । तरुण विजय का कद बढ़ाकर आलाकमान ने मैदानी क्षेत्र से एक नेता को भविष्य में मुख्यमंत्री के दावेदार के रुप में चुपके से आगे भले ही बढ़ाया हो पर आरोपों के छींटों ने उनकी शुरुआत पर सवालिया निशान लगा दिए हैं । भाजपा आलाकमान द्वारा पांचजन्य के पूर्व संपादक और झंडेवालान के दूत माने जाने वाले तरुण विजय को राज्यसभा भेजे जाने से प्रदेश भाजपा के भीतर नाराजगी है । तरुण विजय का उत्तराखंड की राजनीति में कोई योगदान नहींे रहा है।वह आरएसएस के दिल्ली वाले पॉलीहाउस में पले बढ़े हैं । आलाकमान की इस अमरबेलि की जड़ें दिल्ली के अलावा कहीं नहीं हैं । हालांकि आरएसएस और आलाकमान के डर से भाजपाई जुबान नहीं खोल रहे परंतु असंतोष बरकरार है । भाजपा के कई नेता नितिन गडकरी को उनका वह बयान याद दिला रहे हैं जिसमें खुद को कार्यकर्ताओं का हितैषी बताते हुए टिकट के लिए दिल्ली की परिक्रमा न करने को कहा था । असंतुष्ट भाजपाईयों का कहना है कि पार्टी ने किसी कार्यकर्ता को राज्यसभा भेजने के बजाय अपनी कलम रोप दी है। भाजपाईयों का तर्क है कि प्रदेश में जनरल टीपीएस रावत ,पूर्व सांसद व प्रदेशाध्यक्ष बच्ची सिंह रावत, पूर्व विधायक भारत सिंह रावत, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष पूर्णचंद्र शर्मा, पूर्व मंत्री मोहन सिंह रावत गांववासी, पृथ्वी सिंह विकसित जैसे दिग्गज नेताओं और सुरेखा ध्यानी, कृष्णानंद मैठाणी,,प्रकाश सुमन ध्यानी समेत नई पीढ़ी के कई बुद्धिजीवी और अकादमिक योग्यता वाले नेताओं की पूरी पौध की उपेक्षा कर आलाकमान ने साफ कर दिया है कि भाजपा में संघर्ष करने वालों का कोई भविष्य नहीं है । पूर्व विधायक भारत सिंह रावत ने इसका खुलकर विरोध करते हुए इसे पार्टी के लिए आत्मघाती बताया । दिलचस्प बात यह है कि पहाड़ के भाजपा नेता इसे पार्टी पर मैदानी लॉबी के हावी होने के रुप में देख रहे हैं तो भाजपा की मैदानी लॉबी भी तरुण विजय को राजनीति में उतारे जाने के कदम को खुद के लिए खतरा मान रही है । पर आलाकमान ने तरुण विजय जैसे तेजतर्रार नेता को उत्तराखंड की भाजपा राजनीति में उतारकर मैदानी क्षेत्र से मुख्यमंत्री का एक भावी दावेदार तैयार करता दिख रहा है। आगामी चुनाव में मैदानी क्षेत्र में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ जाने से उत्तराखंड विधानसभा का संतुलन बदल जाने वाला है। उसका पलड़ा पहली बार थोड़ा मैदान की ओर झुका होगा। ऐसे एक मैदानी नेता को प्रोजेक्ट कर भाजपा इस इलाके में चुनावी लाभ उठाने की सोच सकती है। चुनाव की बिसात पर तरुण आलाकमान के ऐसे ही मैदानी मोहरे होंगे। बस अड़चन इतनी है कि संघ के नेता शेषाद्रिचारी ने तरुण विजय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी राजनीति की राह मुश्किल कर दी है। उन पर आरोप है कि उन्होने पांजजन्य का संपादक पद पर रहते हुए अपनी संस्था के लिए तत्कालीन भाजपा सरकार से कई एकड़ जमीन मात्र एक रुपए में लीज पर अलॉट कराई और सांसद निधि समेत कई माध्यमों से इस संस्था के लिए करोड़ों रुपए जुटाए। बताया जाता है कि इस संस्था के लिए फंड जुटाने में भाजपा के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नाम का जमकर इस्तेमाल किया गया और देहरादून और उत्तराखंड में यह संस्था आडवाणी इंस्टीट्यूट के नाम से जानी जाती है। इसमें आडवाणी की पुत्री को ट्रस्टी बनाए जाने से भी इस प्रचार को बल मिला। भाजपा नेताओं का कहना है कि पांचजन्य के इतिहास में यह पहली बार था जब उसके किसी संपादक ने व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया । उनका कहना है कि पांचजन्य के संपादक शानदार और बेदाग मूल्यों के लिए जाने जाते हैं पर इस प्रकरण से कई दशकों की उस परंपरा भी नहीं बच पाई । हालांकि अभी तक ये सिर्फ आरोप हैं और इनकी जांच से ही सच्चाई सामने आ पाएगी पर शेषाद्रिचारी जैसे बड़े और निर्विवाद नेता द्वारा आरोप जड़ने से उत्तराखंड के असंतुष्ट भाजपाई उत्साहित हैं और भविष्य में यह आरोप जरुर राजनीतिक गुल खिलायेंगे।
Madhav! apke photo ne nihaal kar diya aur besakhta ek sher yaad aaya," Ghar se hai masjid bahut door/ Chalo kisi bachche ko hansaya jaye." Kash! hamare hazaron hazar shabd ye karamaat kar pate.
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