उत्तर प्रदेश में बसपा के एक दर्जन विधायकों के दल बदल को जायज ठहराने वाले भाजपा के केसरीनाथ त्रपाठी के नक्शे कदम पर चलते हुए कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने भी लोकतंत्र के इतिहास में एक और काला पन्ना जोड़ दिया है। सिद्धांतों की सबसे ज्यादा दुहाई देने वाली भाजपा ने कर्नाटक में जो किया है उससे साफ हो गया है कि सत्ता के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। इस मामले में वह कांग्रेस को कोसों पीछे छोड़ चुकी है। विधानसभाध्यक्ष केजी बोपेया ने ह्विप का उल्लंघन किए बिना ही विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया। वह यहीं नहीं रुके और लोकतंत्र को ठेंगा दिखाते हुए उन निर्दलीयों को भी अयोग्य घोषित कर दिया जो भाजपा विधानमंडल के सदस्य ही नहीं हैं। भारतीय राजनीति में अपने चाल, चरित्रा और चेहरे का दंभ लेकर आई इस पार्टी का हाल यह है कि वह सत्ता के भूखे नेताओं की लालची भीड़ में बदल गई है।
- दक्षिण के द्वार पर दस्तक देकर भाजपा जब जोर-शोर के साथ कर्नाटक की सत्ता पर काबिज हुई थी तब भी वह अपने पुण्य से नहीं बल्कि कर्नाटक में खनन के सरगनाओं की मदद और आर्शीवाद से ही सत्ता में आई थी। कर्नाटक से लेकर आंध्र प्रदेश तक राजनीति पर खनन माफिया हावी है। अंतर बस इतना है कि आंध्र प्रदेश में वह कांग्रेस के साथ है और कर्नाटक में उसने भाजपा का दामन थाम लिया है। खनन के काले धन ने कर्नाटक और आंध्र की राजनीति को इस कदर गंदा और भ्रष्ट कर दिया है कि वहां सरकारें जनहित से ज्यादा इन माफियाओं के लिए चल रही हैं। कर्नाटक में भाजपा के भीतर कभी शांति नहीं रही। येदुरप्पा भले ही मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे हों पर भाजपा में प्रभावशाली रहे आडवाणी खेमे के अनंतकुमार गुट को वह फूटी आंख नहीं सुहाए। येदुरप्पा के खिलाफ लगातार असंतोष सर उठाता रहा और भाजपा आलाकमान इस पर काबू पाने में नाकाम रहा।
- मुख्यमंत्री के खिलाफ ताजी बगावत भी भाजपा की अंदरूनी राजनीति का ही नतीजा है। इतना जरूर है कि इस बगावत को जेडीएस के कुमारस्वामी ने संरक्षण दिया और पर्दे के पीछे कांग्रेस ने हवा दी पर इससे भाजपा अपनी कमजोरियों से बरी नहीं हो जाती। निश्चित तौर पर यह सब तब ही हुआ जब भाजपा में अंदरूनी लड़ाई बगावत के स्तर जा पहंची। यह भी सही है कि बगावत करने वाले सदस्यों के पास विधायक दल में विभाजन के लिए जरूरी संख्या नहीं थी।
- लेकिन कर्नाटक असेंबली के भीतर जो हुआ उसने संविधान की धज्जियां उड़ा दी। विधानसभा के स्पीकर ने सदन शुरू होने से पहले ही न केवल विधानसभा के बाहर घटी घटनाओं का संज्ञान लिया बल्कि उसको आधार बनाकर भाजपा के 11 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया। यह पूरी तरह से गैर कानूनी था। क्योंकि स्पीकर केवल और केवल सदन के भीतर की घटनाओं पर निर्णय के लिए जिम्मेदार है और सदन के बाहर की घटनायें उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आतीं। सारे संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखते हुए स्पीकर ने हद से बाहर जाते हुए उन निर्दलीयों को भी अयोग्य ठहरा दिया जो भाजपा के सदस्य ही नहीं थे। जबकि निर्दलीयों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई तभी हो सकती है जब उन्होने दल की ऐशोसियेट सदस्यता ले ली हो। स्पीकर को किसी विधायक को अयोग्य ठहराने का अधिकार तभी है जब कोई विधायक पार्टी के ह्विप का उल्लंघन करे। ऐसा वाकया कई बार हुआ है जब किसी विधायक या संसद सदस्य ने अपनी पार्टी के खिलाफ सार्वजनिक बयान दिए पर सदन में ह्विप का उल्लंघन नहीं किया लिहाजा उनको अयोग्य नहीं करार दिया जा सका। इस मामले में संवैधानिक प्रक्रिया के हिसाब से पहले मुख्यमंत्राी विश्वास मत पेश करते और उसके बाद सभापति उस पर मत विभाजन करवाते। मतविभाजन में यदि भाजपा के बागी सदस्य सरकार के खिलाफ वोट करते तब बीजेपी द्वारा लिखित मांग करने पर सभापति अयोग्यता की कार्रवाई आरंभ करते। बीजेपी की मांग और प्रमाण के बावजूद सभापति के लिए जरूरी था कि वह विधयकों को अपना पक्ष रखने का मौका देते। जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया जा रहा हो उसे सफाई का मौका देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत जरूरी है। लेकिन कर्नाटक असेंबली में इन सब नियमों और प्रक्रिया का पालन ही नहीं हुआ। बागी विधायकों को सभापति के आदेश पर पुलिस ने सदन में जाने से रोक दिया और उन्हे वोट देने का मौका ही नहीं दिया गया। तकनीकी स्थिति यह है कि अयोग्य घोषित किए गए सदस्यों ने पार्टी ह्विप का उल्लंघन ही नहीं किया। सवाल उठता है जब उन्होने ह्विप का उल्लंघन ही नहीं किया तब उन्हे सभापति कैसे अयोग्य घोषित कर सकते हैं? जाहिर है कि सभापति ने पक्षपातपूर्ण तरीके से भाजपा के एजेंट की तरह काम किया और उतने विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जितने में सरकार बच सकती थी। गजब यह है कि इनमें से किसी को भी अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया गया। भारत के विधायी इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई दल सरकार बचाने के लिए इस सीमा तक गया। यह विडंबना ही है कि सबसे अलग चाल,चरित्र और चेहरे होने का दम भर रही भाजपा के नाम पर ही संविधान की ध्ज्जियां उड़ाने के रिकार्ड हैं। उत्तरप्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष के रुप में केशरी नाथ त्रिपाठी ने मुलायम की सरकार बचाने के लिए बसपा से साफ तौर पर दलबदल कर आए एक दर्जन विधायकों की सदस्यता खत्म करने के बजाय उनका मामला सालों तक लटकाए रखा और उनके समर्थन के बूते सरकार चलती रही। भाजपा की इस हरकत को यूपी के लोगों ने माफ नहीं किया और भाजपा इस तरह की अवसरवादिता के कारण वहां वनवास पर है।
- इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि विधानसभाओं में दलबदल और बहुमत को लेकर किए जाने वाले फैसलों में विधानसभा अध्यक्ष न तटस्थ रहते हैं और न न्याय के तकाजे पूरे करते हैं। अध्यक्ष के पक्षपातपूर्ण और तानाशाही भरे रूख के चलते विधानसभा के भीतर बहुमत तय करने की संवैधानिक व्यवस्था विफल हो गई है। भाजपा ही नहीं बल्कि लगभग सभी दलों के सभापति इस प्रावधान का दुरूपयोग कर रहे हैं। इसलिए जरुरी है कि सभापति के बजाय किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की अध्यक्षता में विश्वास मत पेश कराया जाय और मतों की गिनती से लेकर विश्वासमत के पास होने या गिरने का ऐलान वही व्यक्ति करे। बेहतर हो कि यह जिम्मा चुनाव आयोग को ही सौंपा जाय और बहुमत जुटाने या सरकार गिराने में धन के इस्तेमाल पर भी आयोग को ही नजर रखने का अधिकार दिया जाय। ऐसी व्यवस्था न होने से बहुमत साबित करने की पूरी प्रक्रिया मजाक बनकर रह गई है।
- अचरज यह है कि साफसुथरी राजनीति का ढिंढोरा पीटनेवाली भाजपा इस मामले में रंगे हाथ पकड़ी गई है। समूचे देश को मालुम है कि भाजपा के पास सरकार चलाने के लिए आवश्यक बहुमत नहीं था। इसके बावजूद भाजपा के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी भी कर्नाटक सरकार के पास बहुमत होने के सफेद झूठ को सही ठहरा रहे हैं। अस्सी साल की उम्र के एक बुजुर्ग से यह देश सच बोलने की अपेक्षा तो कर ही सकता है। महाभारत में कहा गया है कि वह सभा, सभा नहीं है जिसमें कोई बुजुर्ग न हो और वह बुजुर्ग, बुजुर्ग नहीं है जो न्यायसंगत बात न करता हो। काश! हिंदू संस्कृति के सबसे बड़े राजनीतिक भाष्यकार आडवाणी ने महाभारत के ये नीति वाक्य पढ़ लिए होते! इस मामले पर भाजपा जितना शोर मचा रही है उतना ही उसका चरित्र लोगों के सामने प्याज के छिलकों की तरह उतर रहा है। क्या आरएसएस की चरित्र निर्माण की फैक्टरी में येदुरप्पा, खनन सरदार रेड्डी बंधु और केजी बोपेया जैस नेता ही तैयार किए जाते हैं ?