मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

Uttrakhand News

              ‘‘जनपक्ष टुडे’’ का संघर्ष रंग लाया

‘‘दुनिया में कई ऐसे वाकये हुए हैं जिन्होने बताया कि तानाशाह सिर्फ सैनिक क्रांतियों के राजमार्ग से नहीं आते वे लोकतंत्र के चोर दरवाजे से भी आते हैं।प्रेस लोकतंत्र की रखवाली करता है इसलिए प्रेस की आजादी कई राजनेताओं को नहीं भाती। वे चाहते हैं कि प्रेस में उनकी जय हो की धुन गूंजती रहे।उत्तराखंड में हालांकि मीडिया में सरकार की जय हो की धुन बज रही हैफिर भी सरकार छोटे अखबारों पर लगाम लगााने पर आमादा है। सरकार ने जो सर्कुलर निकाले हैं वे विरोध की आवाज कुचलने के उसके इरादों की गवाही देते हैं। यही नहीं सूचना के अफसर थानेदार की तरह अखबारों से जवाब तलब कर रहे हैं। सूचना के प्रमुख सचिव प्रेस की आजादी कायम रखने के लिए चिंतित नहीं हैं वरन वे डीएमों को हिदायत दे रहे हैं कि सरकार के खिलाफ खबर न छपने पाए। सरकार का रवैया बता रहा है कि राज्य में प्रेस की आजादी खतरे में है।और अभिव्यक्ति की आजादी के रहनुमा पत्रकार संगठन, संपादक, लेखक, कवि और राजनीतिक दल सब खामोश होकर छोटे अखबारों का गला घोंटे जाता देख रहे हैं। इस घोष के साथ ‘‘जनपक्ष टुडे’’ ने अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगाए जाने के खिलाफ जो अभियान छेड़ा था वह कामयाब हो गया है। उत्तराखंड सरकार ने घोषणापत्र समेत उन सारे कदमों को वापस ले लिया है जो प्रेस की आजादी को प्रभावित करते हैं। ‘‘जनपक्ष टुडे’’ के उस अंक की झलक एक बार फिर ............

1 टिप्पणी:

  1. आगे आगे देखिये होता है......... यह साबित करता है कि अब तक के दस वर्षों में सरकारों को चयन में हम फेल हुए हैं। आगे भी होंगे तो आश्चर्य नहीं। क्योंकि सबको ठेकेदारी चाहिए, ठेकेदार हमारा संबन्धी ही होता है, सो उसके कहे पर "भेड़" बनने में क्या गुरेज। बोल्दा बल, बुत्यूं ही काटण प्वड़ेन्द। तो काटिए और काटते रहिए।

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