बुधवार, 18 अगस्त 2010

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                    गजब के हरक ! हरक का गजब !!

  • वह शायद 1990 के आसपास की बात रही होगी तब आज के प्रतिपक्ष के नेता हरक सिंह रावत गढ़वाल विश्वविद्यालय में शिक्षक थे लेकिन वह राजनीति को अपना पेशा बना चुके थे। उनके पास एक स्कूटर हुआ करता था। उस स्कूटर की ड्राइविंग सीट पर हरक सिंह होते थे और उनें पीछे की सीट पर आज के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हुआ करते थे। लेकिन वक्त ने करवट बदली और उनके स्कूटरिया यार निशंक को भाजपा आलाकमान ने उत्तराखंड को चलाने का जिम्मा सौंप दिया। हरक सिंह के पास विधानसभा के भीतर कांग्रेस को चलाने का भार है। पहले तो यह बात भाजपा और कांग्रेस के भीतर खुसफुसाहट के रुप में कही जा रही थी अब जबकि हरक सिंह स्वीकार कर चुके हैं कि उनके और मुख्यमंत्री के बीच एक गुप्त संधि थी तब जाकर साफ हुआ कि मुख्यमंत्री के स्कूटर की पीछे की सीट पर कोई और नहीं विपक्ष के नेता बैठे हैं।स्कूटर वाली दोस्ती कायम है। इसे कहते हैं सच्ची और शोले वाली दोस्ती! सीटें बदल गईं पर दोस्ती नहीं बदली। प्रदेश हैरान है कि मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता एक ही स्कूटर पर सवार होकर फिल्म शोले के जय और वीरु की तरह गा रहे हैं, ‘‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, तोड़गें दल पर तेरा साथ ना छोड़ेंगे।’’ कहते हैं कि मुख्यमंत्री आवास में एक कमरा वीरु के लिए आरक्षित है पर कहने वाले इसे कमरा नहीं कांग्रेस के लिए मकबरा भी कहते हैं।उत्तराखंड में फिल्माई जा रही इस शोले में जय और वीरु की दोस्ती का एक कारण यह भी है कि दोनों के अपने- अपने गब्बर भी हैं। एक को जनरल गब्बर लगते हैं तो दूसरे को हरीश रावत। गब्बरों को निपटाना है तो जय-वीरु की दोस्ती जरुरी है।
  • पौड़ी विधानसभा क्षेत्र से राजनीति शुरु करने वाले हरक सिंह रावत राजनीति के उस्ताद माने जाते। पहले मनोहर कांत ध्यानी फिर बीसी खंडूड़ी की उंगली थाम कर भाजपा की राजनीति में ऐसे जमे कि भाजपा के भीतर कईयों को उनसे खतरा महसूस होने लगा। बीजेपी की नई पीढ़ी के नेताओं में उन्होने सबको पीछे छोड़ दिया। उनकी महत्वाकांक्षाओं को भांप रहे नेताओं ने उन्हे भाजपा से बाहर करवा दिया।भाजपा से निकलकर उन्होने सतपाल महाराज की उंगली थामी और 1996 के लोकसभा चुनाव में उनकी सोशल इंजीनियरी और चुनावी तिकड़मों ने मिलकर भाजपा के जनरल को चित कर दिया। सतपाल महाराज को राजनीति में भी चेले चाहिए या फिर भक्त। वह खुद ही गढ़वाल में ठाकुर राजनीति के पोप होना चाहते थे इसलिए दूसरे पोप को कैसे बर्दाश्त करते? पर हरक सिंह राजनीति में महाराज का संप्रदाय बनाने तो नहीं आए थे। वह गढ़वाल विवि की शिक्षक राजनीति के गुरुकुल में प्रशिक्षित थे। गुरु को गुड़ बनाए रखने व खुद शक्कर बन जाने की टेक्नोलॉजी में दक्ष हरक सिंह सतपाल के कंधे पर सवार होकर राजनीति में लंबी छलांग मारने को आतुर थे। लिहाजा यह हिट जोड़ी भी टूट गई। हरक सिंह बसपा में गए और वहां भी उन्होने अपना लोहा मनवाया। एक दशक से ज्यादा समय तक राजनीति में घुमक्कड़ की तरह इधर उधर आते जाते रहे हरक जब कांग्रेस में पहुंचे तो वहां उन्होने डेरा जमा लिया। वहां उनकी धूनी ऐसी जमी कि वह कई दशकों से कांग्रेस की राजनीति कर रहे दिग्गजों को पछाड़ते हुए न0 2 हो गए।अदम्य महत्वाकांक्षा और दबंग राजनीति हरक की राजनीति की बुनियादी ताकत है। अपने समर्थकों के लिए किसी से भी भिड़ जाने की उनकी खासियत से ही उनके पास कुछ कर गुजरने वाले समर्थकों की पल्टन है। राजनीति की यह खासियत ही उनकी सीमा भी है।उनके विरोधी भी उतने ही कट्टर हैं जो किसी भी कीमत पर उन्हे आगे नहीं आने देना चाहते। इसीलिए विवादों से उनका पुराना नाता रहा है। पटवारी भर्ती कांड, जेनी कांड समेत कई विवादों से घिरे हरक अब भूमि घोटाले में घिर गए हैं। इतना तय है कि इससे वह बेदाग बाहर नहीं आ सकते। पर इस घपले के उछाले जाने से नाराज उनके करीबी हरीश रावत खेमे पर उंगली उठा रहे हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री के सबसे तगड़े दावेदार माने जा रहे हरक सिंह रावत को दौड़ से बाहर करने के लिए इसे उछाला गया है।यह घपला तो निर्णायक साबित हो ही सकता है पर हरक ने निशंक के साथ संधि होने की बात स्वीकार कर अपने पैर में खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है।मुख्यमंत्री को लेकर उनके रवैये पर पहले ही कांग्रेस में सवाल उठते रहे हैं।इससे वह और भी ज्यादा घिर गए हैं। पार्टी में पहले ही उन पर सवाल उठता रहा है कि वह विधानसभा के भीतर नहीं बल्कि बाहर ज्यादा एक्टिव रहते हैं।अपने ही बयान से मुश्किल में फंसे हरक की घेराबंदी कांग्रेस में होने लगी है।उनके बयान की प्रति आलाकमान तक पहुंचाई जा चुकी है।

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