एक निलंबित कर्मचारी की बीमारी के बहाने राज्य सरकार को आंखें दिखाना सचिवालयकर्मियों को खासा महंगा पड़ने वाला है । सरकार ने जांच कराकर पता लगा लिया है कि निलंबन की कार्रवाई के बाद उक्त कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया । उसकी बीमारी के बहाने जिस तरह से दबाव की संगठन नेताओं द्वारा राजनीति खेली गई उसे मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बेहद गंभीरता से लिया है । इसका आभास शासन की कड़क शैली से भी हो रहा है । संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का सरकार जवाबतलब कर चुकी है । साथ ही मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय का यह कहना कि सचिवालय में जल्द ही कार्य दिवसों का स्वरूप ‘फाइव डेज’ के बजाय ‘सिक्स डेज’ होगा, को कर्मचारियों की ‘प्रैशर टैक्टिस’ का जवाब माना जा रहा है । इस पर भी कर्मचारियों के रुख में बदलाव नहीं आया तो सरकार आगे चलकर ट्रांसफर पालिसी पर भी विचार कर सकती है । यानी सचिवालयकर्मी सचिवालय में नौकरी के एकाधिकार से भी हाथ धो बैठेंगे ।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक शायद ‘भय बिन होत न प्रीत’ के फार्मूले पर चल पडे़ हैं । इसी फार्मूले का नतीजा है कि जिलों व ब्लाकों से लेकर राज्य सचिवालय तक सभी जगह छापे मारे जा रहे हैं । इस अभियान में खुद मुख्यमंत्री भी शामिल हैं । वे राज्य सचिवालय में दो बार छापे मार चुके हैं । दोनों ही मौकों पर उन्होंने कई सचिवों से लेकर कर्मचारियों तक को अपने कक्षों से नदारद पाया । नौकरशाही के गढ़ में छापे मारने का साहस करने वाले निशंक पहले मुख्यमंत्री हैं । इससे पहले किसी भी मुख्यमंत्री ने उन्हें छेड़ने का साहस नहीं किया था । वे तो अभी तक सरकार के सबसे करीब होने के विशेषाधिकार का लाभ उठाने के आदी रहे हैं । पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने जब समाज कल्याण अनुभाग के एक समीक्षा अधिकारी को बगैर छुट्टी के नदारद पाये जाने पर निलंबित किया तो सचिवालय कर्मी संगठन ने उसकी बीमारी के बहाने मुख्यमंत्री के अभियान के विरोध में प्रदर्शन किया और आंदोलन की धमकी तक दे डाली । जांच कराने पर पता चला कि निलंबित कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके बाद दबाव की राजनीति खेली गई । इसे मुख्यमंत्री ने बेहद गंभीरता से लिया । सूत्रों की मानें तो संगठन की ‘प्रैशर टैक्टिस’ का जवाब देने के लिए सरकार ने कवायद शुरू कर दी है । जल्द ही सचिवालय कर्मचारियों के केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर ‘फाइव डे वीक’ का विशेषाधिकार छिनने वाला है । ऐसा हुआ तो सचिवालयकर्मियों को साल भर में 48 छुट्टियों की कटौती का जोरदार झटका लगेगा । इतना नहीं अगर सरकार को जरा सा भी आभास हुआ कि वे समयबद्ध और तीव्र विकास के आडे़ आ रहे हैं तो इसका तोड़ भी सरकार ने ढूंढ लिया है । ऐसा मुमकिन हो सकता है कि सरकार सचिवालय में भी ट्रांसफर पालिसी लागू कर दे । यानी निकम्मे कर्मचारियों को फील्ड में दौड़ा दिया जाए । बहरहाल सरकार द्वारा संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का जवाबतलब किए जाने के बाद कर्मचारियों का पारा और ज्यादा चढ़ गया है । वे अब आंदोलन की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। यह स्थिति कम से कम जनता जर्नादन के लिए ठीक नहीं है। सरकार-कर्मचारियों के बीच खाई बढ़ाने के बजाय इसे पाटने पर जोर होना चाहिए ।
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