रविवार, 18 नवंबर 2012

Liquor Baron Ponty Chadha, Who ruled the politics of Uttrakhand



 उत्तराखंड की राजनीति पर भी हावी था पौंटी का जलवा
Ponty Chadha: The Liquor baron
पौंटी चढ़्ढ़ा और उसके भाई के बीच हुई गोलीबारी में उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष सुखदेव सिंह नामधारी भी शामिल था। इससे साफ है कि उत्तराखं डमें किस तरह की अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को लालबत्ती दी गई है। पौंटी चढ़्ढा का उत्तराखंड की राजनीति में जबरदस्त असर रहा है। उसकी शराब से कमाई दौलत इस राज्य के कई नेताओं और अफसरों के सर चढ़कर बोलती रही है। एक आईएएस अफसर तो पौंटी चढ़्ढ़ा के समर्थन के बूते ही मुख्य सचिव बने और बरकरार रहे। राज्य के एक मुख्यमंत्री तो केवल पौंटी चढ़्ढ़ा की दौलत के बूते ही गद्दी पर बैठे। एक ही रात में 50 करोड़ रुपये आलाकमान में बंट गए और रातोंरात फैसला बदल गया।कांग्रेस के भीतर भी अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाने के लिए पौंटी चढ़्ढ़ा ने करोड़ों रुपये झोंक दिए थे। राज्य का लगभग हर मुख्यमंत्री पौंटी चढ़्ढ़ा के साथ ही रहा। किसी ने भी शराब के क्षेत्र में पौंटी के साम्राज्य को चुनौती नहीं दी। इस मायने में पौंटी उत्तराखंड में मुख्यमंत्री से भी ज्यादा ताकतवर और प्रभावी हैसियत रखता था।शराब माफिया किस तरह राज्य की सरकार को संचालित कर सकता है यह राज्य बनने के बाद साफ दिखाई देता है। लगभग 2000 करोड़ रुपये के शराब कारोबार से कई नेता करोड़पति बने हैं,पौंटी चढ़्ढ़ा की ताकत का यही राज है। कहा जा सकता है कि दोनों दलों में वही एक व्यक्ति था जो असल मायनों में विधायक दल का नेता था। 

सोमवार, 2 जनवरी 2012

Janmanch Condemns Chief Election Commisioner's Decision


    चुनाव आयोग का फैसला तानाशाहीपूर्ण- जनमंच
उत्तराखंड जनमंच ने राज्य में 30 जनवरी को मतदान कराए जाने के चुनाव आयोग के फैसले को तानाशाहीपूर्ण,अवैज्ञानिक और अदूरदर्शी बताते हुए कहा है कि यह पहाड़ के लोगों को मतदान में हिस्सा लेने से रोकने की साजिश है। हिमालय के दुर्गम भौगोलिक इलाकों में जनवरी के महीने चुनाव कराने का निर्णय पागलपन से भरा है और यह निर्वाचन में भाग लेने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों की जान को जोखिम में डालने वाला है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी को भेजे एक फैक्स में मंच ने आरोप लगाया है कि आयोग ने पहाड़ के लोगों के साथ मतदाता की तरह नहीं बल्कि भेड़ बकरी की तरह सलूक किया है। जनमंच ने राज्य के सभी राजनीतिक दलों,बुद्धिजीवियों, कानूनविदों से अपील की है कि वे चुनाव आयोग के इस निर्णय पर सड़क से लेकर अदालत तक विरोध दर्ज करें।
निर्वाचन आयोग को फैक्स से भेजे गए एक पत्र में उत्तराखंड जनमंच के प्रमुख महासचिव राजेन टोडरिया ने कहा चुनाव आयोग के फैसले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि जनवरी के महीने में कभी भी किसी हिमालयी राज्य में चुनाव नहीं कराए गए। उन्होने कहा कि दिल्ली में एसी कमरों में बैठे मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त पहले चमोली,टिहरी,उत्तरकाशी,पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा समेत पहाड़ी जिलों के ऊॅुचाई वाले हिस्सों का दौरा करें तब उन्हे मालुम हो सकेगा कि इस समय पहाड़ी इलाकों में हालात कितने खराब और प्रतिकूल हैं। उन्होने कहा कि चुनाव आयोग का रवैया ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करना है परंतु कड़ाके की ठंड और हिमपात के प्रतिकूल मौसम में मतदान पर भारी दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका बनी हुई है। यही नहीं यदि हिमपात हुआ तो राज्य के कई इलाकों में चुनाव प्रचार करना असंभव हो जाएगा। इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जनसंचार के साधनों की पहंुच मुश्किल से 40 प्रतिशत आबादी तक है। बाकी साठ प्रतिशत आबादी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के बारे में सिर्फ राजनीतिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से ही जान सकती है। खराब मौसम और कम अवधि के कारण राज्य के अधिकांश इलाकों तक राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं जा सकेंगे। ऐसी स्थिति में मतदाता के पास राजनीतिक दलों के एजेंडे या चुनावी मुद्दों की जानकारी नहीं मिल पाएगी। उन्होने सवाल किया कि क्या चुनाव आयोग उत्तराखंड में मतदान की औपचारिकता ही पूरा करना चाहता है। टोडरिया ने कहा कि यह अलोकतांत्रिक,मनमानीपूर्ण और अफसरशाही के अहंकार से प्रेरित निर्णय है। इससे साबित हो जाता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त पहाड़ के लोगों को मतदाता नहीं बल्कि भेड़-बकरी समझते हैं जिन्हे वह जनवरी में भी मतदान के लिए हांक सकते हैं।
उत्तराखंड जनमंच ने राज्य के सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों और विधिवेत्ताओं से अपील की है कि दिल्ली में एसी कमरों में बैठे आयोग के कर्णधारों की इस अवैज्ञानिक, अदूरदर्शी, अलोकतांत्रिक सोच के खिलाफ सड़क से लेकर अदालतों तक विरोध दर्ज करायें। उन्होने कहा कि ऐसा किसी दूसरे पहाड़ी राज्य में होता तो अब तक तूफान मच चुका होता। जनमंच के प्रमुख महासचिव ने कहा कि उत्तराखंड में चुनाव कराने का आदर्श मौसम मार्च से मई तक होता है। विशेष हालातों में फरवरी के तीसरे और चैथे सप्ताह में भी चुनाव कराए जा सकते हैं पर जनवरी में चुनाव कराने का विचार मूर्खतापूर्ण और निरा पागलपन है। उन्होने कहा कि मंच राज्य निर्वाचन आयोग को ज्ञापन देकर भी इस निर्णय का विरोध करेगा।